अंगद का जन्म तथा परिचय Angad ka janm and Introduction
अंगद का जन्म तथा परिचय Angad ka janm and introduction
हैलो दोस्तों नमस्कार आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आजके हमारे इस लेख अंगद का जन्म (Birth of Angad) तथा परिचय में।
दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे की रामायण पात्र बालि पुत्र वीरवर अंगद की उत्पति कैसे हुई थी? दोस्तों अंगद रामायण का एक वह पात्र था जिसने लंकापति रावण की भरी सभा में ना
हीं अपनी बहादुरी और साहस का परिचय दिया वही दूसरी तरफ भगवान श्रीराम की शरण में आने का प्रस्ताव भी रावण तथा रावण के राक्षसों को दिया।
तो दोस्तों आज उसी अंगद के बारे में हम जानेंगे कि अंगद का जन्म किस प्रकार हुआ था? अंगद के माता पिता कौन थे? तो दोस्तों बने रहें हमारे इस लेख के साथ अंगद का जन्म में:-
अंगद कौन था who was Angad
रामायण में कई पात्र ऐसे है, जो अपने अदमय साहस और शौर्य के लिए जाने जाते है। उनमें से एक है अंगद अंगद किष्किंधा नरेश महाराज बालि का पुत्र था।
उसकी की माता का नाम महारानी तारा था। अंगद रामायण कालीन एक ऐसा पात्र था, जो अपने अदम्य साहस तथा स्वामी भक्ति के लिए जाना जाता है।
अपने पिता की मृत्यु के बाद पिता के आदेश पर वह भगवान श्रीराम की सेना में शामिल हो गया और रावण राम युद्ध में अपने अदम्य
साहस का परिचय दिया। अंगद एक ऐसा वीरवर सैनिक था जिसने सैकड़ों राक्षस महारथियों को मृत्यु के घाट अकेले ही उतार दिया था
अंगद ने रावण की भरी सभा में रावण के सभी महारथियों को चुनौती दे डाली थी कि अगर इन सभी महारथियों में से कोई भी योद्धा मेरे पैर को
उठा देगा तो में भगवान श्री राम की तरफ से प्रतिज्ञा लेता हूँ, कि भगवान श्रीराम माता सीता को लिए बिना ही यहाँ से चले जाएंगे,
रावण के सभी दरबारियों यहाँ तक कि इंद्रजीत (मेघनाद) जैसे महारथी भी अंगद का पैर टस से मस नहीं कर पाए।
अंगद का जन्म Angad ka janm
अंगद के जन्म की कथा बहुत ही निराली तथा रोचक है। यह बात उस समय की है, जब बालि तपस्या में लीन था। धर्म ग्रंथों के आधार पर बताया जाता है,
कि बालि की दो पत्नियाँ थी, पहली मंदोदरी और दूसरी तारा इसमें मंदोदरी अपने सौंदर्य के लिए तीनों लोकों में विख्यात थी। उसकी इस सुंदरता के चर्चे लंकापति रावण ने भी सुने थे।
लेकिन वह बालि के भय से किष्किंधा के आसपास भी नहीं जाता था। एक समय किष्किंधा नरेश बालि किसी तपस्या में लीन थे और इस बात का लाभ उठाकर रावण किष्किंधा आ गया
तथा तारा और मंदोदरी को देखकर उनके प्रति आकर्षित हो गया और रावण के मन में काम जाग गया, जिस कारण रावण ने रावण की दोनों पत्नियों तारा और मंदोदरी दोनों का ही हरण कर लिया
और लंका की ओर ले जाने लगा तभी मंदोदरी रावण से बोली अभी तुम हमारा हरण कर रहे हो किंतु जब बालि को इस बात का पता चलेगा तो बालि तुम्हें नहीं छोड़ेगा
दोनों राज्यों के कई सैनिक मारे जाएंगे और तुम भी अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। तब रावण ने कहा अगर तुम्हारी जैसी सुन्दर स्त्री कुछ समय के लिए हमारे पास रहे उसके बाद मृत्यु भी आ जाए तो उसका गम नहीं
मंदोदरी ने कहा लेकिन बाद में तुम्हारे इस कृत्य से बहुत भयंकर युद्ध होगा जिसमें कई निर्दोष लोग मारे जाएंगे और मैं ऐसा नहीं चाहती
अगर तुम युद्ध को रोकना चाहते हो तो मैं तुम्हें एक सलाह देती हूँ, तुम मुझे लंका ले जा सकते हैं लेकिन मेरी छोटी बहन तारा को किष्किंधा में ही छोड़ दीजिए
रावण को मंदोदरी की यह बात अच्छी लगी और उसने मंदोदरी की बहन तारा को किष्किंधा की छत पर छोड़ दिया और लंका की तरफ जाने लगा
तो मंदोदरी ने कहा सुना है तुम्हारी गर्जना से जानवर तक का गर्भ गिर जाता हैं एक बार मुझे अपनी भयंकर गर्जना सुना दीजिए तभी रावण ने भयंकर अट्टाहास करके गर्जना करने लगा
तभी मंदोदरी का गर्भ गिर गया और मंदोदरी ने समय से पहले बच्चे को जन्म दे दिया मंदोदरी ने रावण से फिर प्रार्थना की मुझे यह बच्चा तारा को सौंप देने दीजिए। मंदोदरी ने अपना बच्चा तारा को सौंप दिया
और कहा तारा यह मेरा बच्चा है इसे तुम्हें अपना बच्चा समझकर पालना है मैं अपना अंग तुम्हें देकर जा रही हूँ इसे अपने ही बच्चे की तरह पालना और इसका नाम अंगद रखना
मंदोदरी ने अपना बच्चा तारा को सौंपा और रावण के साथ लंका चली गई। जहाँ लंकापति रावण ने मंदोदरी के साथ गंधर्व विवाह किया और उसे अपनी रानी बना लिया इस प्रकार से अंगद का जन्म हुआ।
अंगद की वास्तविक माता मंदोदरी है, किन्तु पालन - पोषण महारानी तारा ने किया इस कारण तारा ही अंगद की माता है।
दोस्तों आपने इस लेख में अंगद का जन्म कैसे हुआ (Birth of Angad) पढ़ा। आशा करता हुँ यह लेख आपको पसंद आया होगा।
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