सूरदास पर निबंध Essay on Surdas in hindi







सूरदास पर निबंध Essay on Surdas in hindi 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के इस लेख में महाकवि सूरदास पर निबंध हिंदी में (Essay on surdas in hindi)।

दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि सूरदास के बारे में जानेंगे। की महाकवि सूरदास का जन्म कहाँ हुआ था?

महाकवि सूरदास की रचनाएँ कौन-कौन सी हैं? महाकवि सूरदास का भाव पक्ष और कला पक्ष क्या है? तो आइए दोस्तों शुरू करते हैं आज का यह लेख महाकवि सूरदास पर निबंध हिंदी में:-

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सूरदास पर निबंध

सूरदास कौन थे who was Surdas 

सूरदास हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की प्रेमाश्रयी शाखा के अंतर्गत सगुण ब्रह्मा भगवान श्री कृष्ण के उपासक तथा एक महाकवि थे।

जिन्होंने भक्ति काल की प्रेमाश्रयी शाखा को सगुण ब्रह्म धारा से युक्त विभिन्न प्रकार की रचनाएँ प्रस्तुत प्रदान की। सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे।

इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु को अपना आराध्य देव मानकर भगवान श्री कृष्ण से संबंधित विभिन्न प्रकार की रचनाओं का सृजन किया।

जिसमें भगवान श्री कृष्ण के प्रति वात्सल्य तथा प्रेम की आभा झलकती रहती है। इसलिए सूरदास को हिंदी साहित्य का सूर्य कहा जाता है। बहुत से विद्वान कहते हैं, कि सूरदास जन्म से ही अंधे थे।

किंतु इस बात से लेकर बहुत से विद्वानों में अभी भी मतभेद है, की जन्म से अंधा एक व्यक्ति सूरसागर, साहित्य लहरी जैसी रचनाएँ किस प्रकार से कर सकता है।

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सूरदास का जीवन परिचय Jivan Parichay of Surdas 

भक्तिकाल के प्रेमाश्रयी शाखा के महान कवि सूरदास जी का जन्म 1478 में आगरा मथुरा मार्ग में स्थित रुनकता नामक क्षेत्र में हुआ था।

लेकिन कुछ विद्वान सूरदास का जन्म स्थान दिल्ली के पास स्थित सीही नामक क्षेत्र को बताते हैं। सूरदास के पिता का नाम रामदास बैरागी था।

जो सारस्वत ब्राह्मण थे तथा गायक का काम किया करते थे। सूरदास भी अपने पिता की तरह ही विद्वान व्यक्ति थे। किशोरावस्था में सूरदास जी विरक्त होकर आगरा गऊघाट पहुंच गए।

तथा वहीं पर रहने लगे। गऊघाट पर ही सूरदास जी की भेंट वल्लभाचार्य जी से हो गई। वल्लभाचार्य सूरदास की प्रतिभा पर मुग्ध हो गए, और उन्होंने उन्हें अपना शिष्य बना लिया।

गुरु वल्लभाचार्य ने सूरदास को पुष्टिमार्ग में शिक्षित कर दिया और कृष्ण लीला के पद गाने के लिए आदेश दिया। और महाकवि सूरदास कृष्ण लीला के पद गाते गए

और एक विख्यात कवि तथा भक्त के रूप में सबके सामने प्रकट हुए। महाकवि सूरदास की मृत्यु 1583 ईस्वी में हो गई थी।

सूरदास की रचनाएँ compositions of Surdas 

महाकवि सूरदास जन्म से अंधे थे। किंतु उनके काव्य की सजीवता देखकर बहुत से कवियों को उनके जन्मांध होने पर विश्वास ही नहीं होता है। महाकवि सूरदास की प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार से हैं:-

महाकवि सूरदास के प्रमुख पांच ग्रन्थ बताये जाते हैं, जिनमें से तीन रचनाएँ अति प्रसिद्ध है:- 

  1. सूरसागर - महाकवि सूरदास की रचना सूरसागर सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें लगभग सवा लाख पर थे, किंतु अब इसके सात से आठ हजार पद ही ज्ञात हैं।
  2. सूरसारावली - सूरसारावली भक्त महाकवि सूरदास की रचना है, जिसमें लगभग 1107 छंद हैं। सूरसारावली वृहत होली गीत के रूप में रचित है।
  3. साहित्य लहरी - साहित्य लहरी सूरदास द्वारा रचित एक छोटी रचना है, जिसमें कुल 118 ही पद हैं।

इसके साथ ही सूरदास की अन्य रचनाओं में जैसे की नल दमयंती, ब्याहलो, नाग लीला, गोवर्धन लीला, सूरपच्चीसी कुल मिलाकर 16 ग्रंथ हैं।

सूरदास का भाव पक्ष Surdas ka Bhav Paksh 

सूरदास जी की भक्ति सखा भाव की थी, इसके साथ ही उनकी भक्ति में वात्सल्य, विनय और मधुरता भी देखने को मिलती है। उन्होंने प्रभु श्री कृष्ण का चित्रण बाल रूप में किया है।

सूर के पद वात्सल्य और प्रेम से ओतप्रोत देखने को मिलते हैं। महाकवि सूरदास प्रेम और सौंदर्य के बहुत बड़े गायक के रूप में जाने जाते हैं।

उन्होंने सबसे अधिक वात्सल्य और श्रृंगार रस का ही चित्रण किया है। महाकवि सूरदास ने बाल जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं छोड़ा जिस पर उनकी दृष्टि ना गई हो।

महाकवि सूरदास ने भगवान श्री कृष्ण तथा गोपियों के बिरह और प्रेम का वर्णन बड़े ही मनोहारी रूप में किया है। सूरदास के पदों में संयोग और वियोग दोनों प्रकार के रसों का ममस्पर्शी प्रयोग देखने को मिलता है।

सूरदास का कला पक्ष Surdas ka Kala Paksh 

महाकवि सूरदास ब्रज भाषा के कवि थे, क्योंकि महाकवि सूरदास ने जो भी रचनाएँ की हैं। वह ब्रजभाषा क्षेत्र में ही रहकर की है।

महाकवि सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य और श्रृंगार की आलौकिक आभा झलकती रहती है। महाकवि सूरदास की रचनाओं में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक जैसे अलंकारों का भी प्रयोग हुआ है।

महाकवि सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रजभाषा का इस प्रकार से प्रयोग किया है कि उनकी रचनाएँ और भाषा निखरती गई है।

माधुर्य और श्रृंगार की प्रधानता होने के कारण उनकी भाषा भावपूर्ण हो गई है। महाकवि सूरदास का पूरा काव्य संगीत की रागरागिनियों से बना हुआ है। उनका काव्य अधिकतर प्रेम के जयगान का काव्य है।

सूरदास के काव्य की विशेषताएँ Features of the poetry of Surdas

  1. महाकवि सूरदास ने अपने काव्य में वात्सल्य और श्रृंगार रस को अधिक प्रधानता दी है उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का बड़ा ही मनोहारी रूप में चित्रण किया है।
  2. महाकवि सूरदास का काव्य भक्ति से ओतप्रोत तो है ही इसके साथ ही उन्होंने श्रृंगार रस का प्रयोग करके अपने काव्य में चार चाँद लगा दिए हैं। ऐसा कहीं प्रयोग देखना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है।
  3. महाकवि सूरदास ने यशोदा तथा गोपियों के शील गुणों का वर्णन तथा मनोहारी चरित्र चित्रण किया है।
  4. महाकवि सूरदास ने कुछ विनय के पद भी रचे हैं, जहाँ पर उनकी भक्ति भावना दासत्व भाव की दिखाई देती है  जबकि सूरदास ने जगह-जगह पर कूट पद भी लिखे है।
  5. सूरदास के काव्य में कोमल पदावली के साथ अलंकार योजना का सीधा और सरल प्रयोग संगीतमयकता तथा सजीवता भी देखने को मिलती है।
  6. सूरदास का भ्रमरगीत वियोग और सयोग दोनों ही का सबसे प्रमुख अनूठा उदाहरण है। जिसमें सगुण और निर्गुण का भी उल्लेख मिलता है, तथा गोपियों और उद्धव के संवाद का हास्य और वियोग भी देखने को मिलता है।

साहित्य में स्थान Sahitya Mai Sthan 

हिंदी साहित्य के सूर्य कहे जाने वाले महान भक्त तथा महाकवि सूरदास का हिंदी साहित्य में सबसे प्रमुख स्थान है। उनके विषय में कहा गया है, कि

सूर सूर तुलसी ससि, उड़गन केशवदास
अब के कवि अघोत सम जहँ तहँ करत प्रवास

दोस्तों इस लेख में आपने सूरदास पर निबंध (Essay on Surdas) पड़ा। आशा करता हूँ, यह देख आपको अच्छा लगा होगा कृपया इसे शेयर जरूर करें।

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