तुलसीदास पर निबंध Essay on tulsidas in hindi
तुलसीदास पर निबंध Essay on Tulsidas in hindi
हैलो दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख तुलसीदास पर निबंध हिंदी (Essay on Tulsidas) में। दोस्तों इस लेख में आप तुलसीदास पर निबंध हिंदी में पढ़ेंगे।
जिसमे आप तुलसीदास कौन थे, तुलसीदास की रचनाएँ तथा भाव पक्ष और कला पक्ष के बारे में जानेंगे। तो आइये दोस्तों शुरू करते है, आज का यह लेख तुलसीदास पर निबंध:-
तुलसीदास कौन थे Who was Tulsidas
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के एक महान कवि और हनुमान भक्त थे, जिन्हें गोस्वामी तुलसीदास के नाम से भी जाना जाता था।
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के राम भक्ति शाखा के एक महान कवि और शांतिदूत थे, जिन्होंने अपना एक पवित्र महान ग्रंथ (Great Epic)
रामचरितमानस लिखा। रामचरितमानस लिखने के कारण तुलसीदास को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास एक कवि, संत होने के साथ ही समाज सुधारक (Social Reformer) के रूप में भी जाने जाते हैं।
तुलसीदास का जीवन परिचय Introduction of Tulsidas
रामभक्ति काव्य धारा के मुख्य प्रतिनिधि कवि, महात्मा और संत तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर जिला बांदा में श्रावण शुक्ला सप्तमी संवत 1589 में हुआ था।
किंतु तुलसीदास के जन्म स्थान में मतभेद है, बहुत से विद्वान तुलसीदास जी का जन्म स्थान सोरों वर्तमान में एटा उत्तर प्रदेश बताते हैं।
तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माताजी का नाम हुलसी देवी था। तुलसीदास जी अपने माँ के गर्भ में 12 माह रहे थे।
माँ के गर्भ में ही तुलसीदास जी के दांत आ गए थे, किंतु जैसे ही तुलसीदास जी पैदा हुए तुलसीदास जी की माता जी का निधन हो गया।
तथा तुलसीदास जी के पिता आत्माराम दुबे ने किसी और अनिष्ट की आशंका होने पर तुलसीदास का त्याग कर दिया और उन्हें अपनी दासी को सौंप दिया और स्वयं तपस्वी हो गए।
इसीलिए तुलसीदास जी का बचपन बड़े कष्टों में बीता था। तुलसीदास जी ने सबसे पहले भगवान श्रीराम का ही नाम लिया था, इसलिए तुलसीदास जी का नाम रामबोला हो गया।
तुलसीदास जी के गुरु नरहरिदास थे और उन्हीं की कृपा से उन्होंने राम भक्ति का मार्ग अपनाया तथा गुरु नरहरिदास ने ही रामबोला को तुलसीदास नाम दिया।
तुलसीदास का विवाह रत्नावली नामक एक सुंदर कन्या से हुआ जिसकी डांट फटकार सुनकर वे विरक्त हो गए और काशी, चित्रकूट, अयोध्या कई तीर्थ स्थानों पर भ्रमण करने लगे
तथा साधु संतों की संगति करके ज्ञान प्राप्ति किया और 1574 ईसवी में अयोध्या में उन्होंने रामचरितमानस की रचना आरंभ कर दी। गोस्वामी तुलसीदास बाद में काशी में रहने लगे वहीं पर उनका अंतिम समय व्यतीत हुआ।
तुलसीदास की रचनाएँ Composition of Tulsidas
महाकवि तुलसीदास जी ने अपने 126 वर्ष के जीवनकाल में कई प्रकार की रचनाएँ की जिनमें से कुछ रचनाएँ निम्न प्रकार से हैं:-
रामचरितमानस - रामचरितमानस भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र पर आधारित एक महाकाव्य है। जिसको महाकवि तुलसीदास जी ने
भगवान श्रीराम के जन्म दिन 1631 में लिखना प्रारंभ किया, जो 2 साल 7 महीने और 26 दिन में भगवान श्री राम के विवाह के दिन संपूर्ण हुआ।
दोहावली - दोहावली गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित दोहों का संकलन ग्रंथ है। दोहावली में कुल 573 दोहे हैं। जिनमें 84 दोहे रामचरितमानस के और 34 दोहे रामाज्ञा प्रश्न के भी उल्लेखित हैं।
कवितावाली - कवितावली में भगवान श्री राम के चरित्र का वर्णन कवित्त,चौपाई आदि छंदों में किया गया है। यह सभी छंद ब्रज भाषा में लिखे गए हैं। कवितावली में सात खंड है।
इसके साथ ही, महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने पार्वती मंगल, जानकी मंगल, विनय पत्रिका,वैराग्य संदीपनी रामललानहछू आदि कई प्रसिद्ध रचनायें लिखी।
तुलसीदास का भाव पक्ष Tulsidas ka bhav paksh
गोस्वामी तुलसीदास राम भक्त कवि हैं। इसलिए उनकी भक्ति भी दास्य भाव की है। तुलसीदास जी की सभी रचनाओं में भावों की बहुलता देखने को मिलती है।
गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य का विषय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का व्यक्तित्व है। उन्होंने भगवान राम की कथा के माध्यम से अपने युग को वाणी दी है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीराम की जीवन गाथा के आधार पर ही आदर्श माता, आदर्श पिता, आदर्श भाई आदर्श पत्नी, और आदर्श सेवक आदि का मार्मिक चरित्र चित्रण किया है।
रामचरितमानस की रचना करके उन्होंने शैव और वैष्णवों के बीच जो मतभेद था, उसको समाप्त करके उन दोनों को एकता के सूत्र में बांधा है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास समाज सुधारक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।
तुलसीदास का कला पक्ष Tulsidas ka kala paksh
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने युग में उपयुक्त सभी प्रकार की भाषा शैलीयों का उपयोग अपने काव्य में किया है।
इसलिए तुलसीदास जी की भाषा शैली दुरुस्त और प्रभावशाली है। उन्होंने छंद दोहा, कवित्त, सैवेय्या के साथ अलंकारों का प्रयोग इस प्रकार से किया है, कि उनकी भाषा और काव्य प्रभावपूर्ण बन गया है।
तुलसीदास अवधि पर ब्रजभाषा (BrijBhasha) के एक सिद्धहस्त लेखक भी हैं। उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा है।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की भाषा इतनी मधुर और सरल एक आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गई है, और रचना के 500 वर्ष बाद भी यह लोगों के ह्रदय में स्थान लिए है। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी का काव्य रस का भंडार है।
समाज सुधारक तुलसीदास Tulsidas as a social worker
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास एक संत और महान कवि होने के साथ ही समाज सुधारक भी थे। उन्होंने श्रीरामचरितमानस तथा रामचरित के द्वारा जनमानस में जीवन के मूल्यों की रचना की है।
तुलसीदास जी द्वारा रचित दोहे हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो हमें घर्म नैतिकता तथा सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
तुलसीदास जी जिस युग में हुए है, उस युग में कई प्रकार के मतभेद और अनियमितताएँ उत्पन्न हो गई थी। एक और हिंदू और मुस्लिम में मतभेद बढ़ रहे थे,
तो दूसरी ओर शैव और वैष्णवों मैं भी मतभेद उत्पन्न होने लगे थे। गोस्वामी तुलसीदास जी ने दोनों की परिस्थितियों का अध्ययन किया और दोनों के मध्य अपने ज्ञान के द्वारा
उन्हें समझाकर सामंजस्य स्थापित किया। तुलसीदास जी ने ज्ञान और भक्ति दोनों की ही महिमा का गुणगान किया। तथा समाज में छूत भेदभाव आदि को वशिष्ठ, निषाद राज श्री राम की
सेना में बंदर भालू आदि का उदाहरण देकर समाप्त किया। समाज सुधारक तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम के संपूर्ण चरित्र को ही समाज सुधार का आधार बनाया।
तुलसीदास का साहित्य में स्थान Tulsidas ka sahitya me sthan
रामभक्ति शाखा के महान कवि संत, समाज सुधारक गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने काव्य के माध्यम से प्रभु भक्ति का सन्देश दिया है।
उन्होंने समाज में व्याप्त छुआ छूत, भेदभाव आदि को अपनी रचनाओं के माध्यम से दूर किया। ऐसे महान समाज सुधारक, संत भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास का साहित्य में एक महान स्थान है।
दोस्तों आपने यहाँ गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध (Essay on goswami tulsidas) पड़ा। आशा करता हूँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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