भगवान विष्णु का दूसरा अवतार Bhagwan vishnu ka doosra avtar






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भगवान विष्णु का दूसरा अवतार Bhagwan vishnu ka doosra avtar 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के इस लेख भगवान विष्णु का दूसरा अवतार (God Vishnu ka doosra avtaar) में। दोस्तों इस लेख में आप भगवान विष्णु के दूसरे अवतार के बारे में जानेंगे कि

भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार कौन सा धारण किया था और किस कारण धारण किया था। तो आइए दोस्तों पढ़ते हैं, पूरी कथा भगवान विष्णु का दूसरा अवतार:-

भगवान विष्णु के 10 अवतार

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार


भगवान विष्णु का कुर्मू अवतार Bhagwan vishnu ka kurmu avtar 

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कुर्मू अवतार उस समय हुआ था। जब देवताओं तथा दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था।

इस कथा का आरम्भ उस समय हुआ जब महर्षि दुर्वासा किसी कारणवश इंद्रलोक गए तथा देवराज से रूष्ट होकर उन्होंने देवराज इंद्र समेत सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया।

जब देवता शक्तिहीन हो गए तो राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया जिसमें शक्तिहीन देवता हार गए। और देवताओं के कई सैनिक मारे गए।

राक्षसों के डर से देवता इंद्रलोक छोड़ कर यहाँ-वहाँ भागने लगे। अंततः हार मानकर सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना करने लगे। हे!

करुणानिधान हमारी रक्षा कीजिए महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण सभी देवता शक्तिहीन हो गए हैं। जिस कारण राक्षसराज बलि ने पृथ्वी लोक सहित इंद्रलोक पर भी अपना साम्राज्य स्थापित कर दिया है।

राक्षसों के डर से सभी देवता भागते और छुपते फिर रहे हैं। हमारी सेना की भी बहुत क्षति हो चुकी है। इसलिए हे! करुणानिधान हम सभी आप की शरण में आए हैं। हमारी रक्षा कीजिए, हमारी रक्षा कीजिए।

तब विष्णु भगवान ने कहा हे! देवेंद्र आप सभी की शक्तियाँ वापस तो आ सकती है। लेकिन शक्ति प्राप्त करने का साधन बहुत ही दुर्गम और कठिन है।

आप सभी देवताओं की शक्तियाँ वापस तभी आ सकती हैं, जब सभी देवता गण अमृत का पान करें। तब देवतागण बोले हे! श्री हरि हमें अमृत कहाँ से प्राप्त होगा।

विष्णु भगवान ने कहा तुम सभी देवताओं और असुरों को साथ मिलकर समुद्र मंथन करना होगा। समुद्र मंथन में सभी प्रकार की जड़ी बूटियों को डाल देना होगा

और समुद्र मथने के लिए मंदराचल पर्वत तथा बासुकी नाग की सहायता लेनी होगी। समुद्र मंथन से कई प्रकार की अलौकिक दिव्य वस्तुएँ प्राप्त होगी।

लेकिन याद रहे असुरों के हाथ में उन वस्तुओं का पहुँचना देवताओं के लिए हितकारी नहीं होगा। किंतु अगर वे वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए शक्ति का प्रदर्शन करने लगे तो तुम देवता

उन्हें वस्तुएँ ले लेने देना और जब समुद्र मंथन में से अमृत प्राप्त होगा, तो अमृत का पान में केवल तुम्हें अर्थात देवताओं को कराऊंगा।

अगर राक्षस अमृत का पान कर लेंगे तो संपूर्ण सृष्टि मैं हाहाकार मचा देंगे। विष्णु भगवान बोले हे! देवेंद्र तुम राजा बलि के पास जाओ और उन्हें समुद्र मंथन में भाग लेने के लिए प्रस्ताव दो।

सभी देवताओं ने भगवान श्रीहरि को प्रणाम किया और वहाँ से चले गए। देवता गण राक्षस राज बलि के पास पहुँचे और समुद्र मंथन के बारे में उन्हें बताया।

देवराज बोले हे! राक्षस राज बलि में तुम्हारे पास एक प्रस्ताव लेकर आया हूँ, और यह प्रस्ताव अमृत पान करने का है। हम देवतागण युद्ध करते-करते थक गए हैं।

इसलिए समुद्र का मंथन करके अमृत प्राप्त करेंगे। हम दोनों राक्षस और देवता उस अमृत का पान करके अमर हो जाएंगे। इस प्रकार से आप और हमारे बीच का युद्ध भी समाप्त हो जाएगा।

क्योंकि हम दोनों पर किसी भी प्रकार के शस्त्रों का कोई भी प्रभाव नहीं रहेगा। देवराज इंद्र का यह प्रस्ताव सुनकर महाराज बलि इस प्रस्ताव के लिए सहमत हो गए। और समुद्र मंथन शुरू कर दिया गया।

मंदार पर्वत को समुद्र मथने के लिए प्रयोग किया गया जबकि बासुकीनाग को मंदार पर्वत को मथने के लिए डोर बनाया गया। वासुकी नाग को पूँछ तरफ से सभी देवतागण पकड़े हुए थे।

तथा मुँह तरफ से सभी राक्षस पकड़े हुए थे। समुद्र मंथन करते समय विभिन्न प्रकार की आलौकिक वस्तुएँ तथा देवियाँ उत्पन्न हुई। कुछ वस्तुओं पर देवताओं ने अपना आधिपत्य जमाया तो कुछ वस्तुओं पर राक्षसराज ने।

किंतु संपूर्ण सृष्टि में उस समय हलचल उत्पन्न हो गई, जब समुद्र मंथन से बिष प्राप्त हुआ। विष के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही थी।

सभी देवताओं ने भगवान भोले शंकर से सृष्टि की रक्षा की प्रार्थना की। और भगवान भोले शंकर ने उस विष को पीकर संपूर्ण सृष्टि को फिर से बचा लिया।

इसके बाद सभी देवताओं और राक्षसों ने फिर से समुद्र मंथन आरंभ कर दिया। किंतु थोड़ी ही देर बाद मंदार पर्वत समुद्र में डूबने लगा।

इस स्थिति को देख श्री हरि विष्णु ने कुर्मू (कछुआ) अवतार धारण किया और अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को स्थापित कर लिया।

अतः मंदार पर्वत समुद्र में डूबने से बच गया और समुद्र मंथन फिर से शुरू हो गया। समुद्र मंथन से कई और दिव्य अलौकिक वस्तुएँ कल्पवृक्ष, कामधेनु आदि प्राप्त हुई और अंततः समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त हुआ।

जिसको ग्रहण करने के लिए राक्षस और देवताओं में फिरसे युद्ध छिड़ गया। इस स्थिति को देख भगवान श्री हरि विष्णु ने एक मोहनी रूप बनाया

और चतुराई से सभी देवों को अमृत पान तथा राक्षसों को जलपान करा दिया। किंतु राक्षसों में से एक राक्षस राहु ने मोहिनी अवतार भगवान विष्णु की चालाकी को पहचान लिया और देवता का रूप बनाकर

देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पान किया। जैसे ही भगवान विष्णु को यह ज्ञात हुआ कि यह राक्षस है, तो उन्होंने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस का गला काट दिया।

किंतु वह राक्षस तो अमृत पान कर चुका था इसलिए उसका सर और धड़ अलग होकर भी जीवित रहा और उसको राहु-केतु के नाम से जाना जाने लगा।

तो दोस्तों यह कथा थी भगवान विष्णु के कुर्मू अवतार की। भगवान विष्णु ने कुर्मू अवतार समुद्र मंथन के समय धारण किया था और देवताओं को अमृतपान कराकर शक्तियों सहित अमर बना दिया।

निष्कर्ष - दोस्तों इस लेख में आपने भगवान विष्णु का दूसरा अवतार (God vishnu ka doosra avtaar) कुर्मू अवतार के बारे में पढ़ा। आशा करता हूं यह लेख आपको अच्छा लगा होगा कृपया इसे शेयर जरूर करें।

इसे भी पढ़े:-

  1. सप्तऋषियों का परिचय
  2. पंच कन्याओं का परिचय
  3. भगवान श्रीकृष्ण के 108 नाम

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