राजा जनक का जीवन परिचय Raja janak ka jivan parichay






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राजा जनक का जीवन परिचय Raja janak ka jivan parichay 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख राजा जनक के जीवन परिचय (Biography of king Janak) में। दोस्तों इस लेख में आप राजा जनक कौन थे?

राजा जनक के माता पिता का नाम, राजा जनक के पुरोहित और गुरु के साथ ही राजा जनक की कहानी पड़ेंगे। तो आइये दोस्तों करते है शुरू यह लेख राजा जनक की कहानी:-

लक्ष्मण की पत्नी का नाम 

राजा जनक का जीवन परिचय

राजा जनक कौन थे Raja janak kon the 

रामायण के राजा जनक से आप सभी परिचित है। कियोकि वे माता सीता के धर्म पिता मिथिला के नरेश तथा महान विष्णु भक्त थे।

राजा जनक एक विद्वान तथा पराकर्मी राजा होने के साथ वेद शास्त्र के प्रकांड विद्वान थे, उनकी सभा में बड़े-बड़े विद्वान् तथा ऋषि मुनि होते थे।

भगवान परशुराम ने उनसे प्रसन्न होकर विश्व प्रसिद्ध शिव धनुष धरोहर के रूप में प्रदान किया था। राजा जनक एक दयालु और प्रजावत्सल राजा थे।

वे अपने प्रजा को अपने पुत्रों की तरह मानते थे। जब मिथिला में अकाल पड़ा तो महाराज जनक बड़े चिंतित हुए और अकाल के निवारण के हर संभव प्रयास किये

यज्ञ, हवन, दान तथा खेतों में स्वयं हल चला कर मिथिला की प्रजा को अकाल से मुक्त कराकर एक प्रजावत्सल राजा होने का परिचय दिया। 

राजा जनक के माता पिता का नाम Raja janak ke Mata-Pita ka naam 

मिथिला के राजा जनक के पिता का नाम निमी था। निमी मिथिला के सबसे पहले राजा थे। जो स्वयं इक्षावकु के पुत्र और मनु के पौत्र माने जाते है।

राजा जनक का जन्म उनके पिता निमी के मृत शरीर से हुआ था। जिससे भी उनको जनक कहा गया। राजा जनक की माता का नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। 

राजा जनक का असली नाम Raja janak ka asli naam 

राजा जनक मिथिला (जनकपुरी) के राजा थे। और राजा को पिता अर्थात जनक कहा जाता है, इसलिए उनका नाम भी जनक हो गया।

किन्तु राजा जनक का असली नाम सिरध्वज था, जबकि उनके अनुज का नाम 'कुशध्वज' था। महाराज जनक की कई वर्षो तक कोई संतान नहीं थी।

जब उन्होने अकाल से अपनी प्रजा की रक्षा करने के लिए खेतो में हल चलाया तब उन्हें पृथ्वी के अंदर संदूक में एक सुन्दर कन्या मिली।

जिसका नाम सीता रखा गया। इसके बाद महाराज जनक की पत्नी सुनैना ने एक पुत्री को जन्म दिया जिनका नाम उर्मिला था। महाराज जनक के छोटे भाई कुशध्वज की दो पुत्रियांँ थी। जिनका नाम माण्डवी और श्रुतकीर्ति था।

राजा जनक के पुरोहित कौन थे Raja janak ke purohit kon the 

महाराज जनक के पिता निमी थे। एक बार महाराज निमी ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था। जिसमें उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को पुरोहित के रूप में आमंत्रित किया।

किन्तु उस समय महर्षि वशिष्ठ देवराज इंद्र के साथ स्वर्गलोक में यज्ञ कर रहे थे। इसलिए यज्ञ का आयोजन गौतम ऋषि और अन्य ऋषियों के द्वारा किया गया। और उनके पुरोहित शतानन्द था।

जिन्होंने स्वयं भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह के साथ लक्ष्मण - उर्मिला, भरत - मांडवी तथा शत्रुघ्न - श्रुतकीर्ति का भी विवाह संपन्न कराया था।

राजा जनक के गुरु कौन थे Raja janak ke guru kon the 

राजा जनक के गुरु का नाम अष्टावक्र था। जिनके शरीर की आकृति आठ जगह से टेड़ी मेडी थी। इसलिए उनकी चाल भी टेड़ीमेडी थी।

लोग उनकी इस काया पर बहुत हँसते थे। और ऐसा ही एक बार महाराज जनक के दरबार में हुआ जब अष्टावक्र बालक अवस्था में थे

तो महाराज जनक के दरबार में पहुँचे। जहाँ राजा सहित सभी विद्वान उस टेड़ीमेडी काया वाले बालक को देख हँसने लगे।

तब अष्टावक्र ने जो ज्ञान की बात कही उसे सुन सभी हक्के बक्के रह गए। और तबसे ही महाराज जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु बनाया और दीक्षा ली। 

राजा जनक किस जाति के थे Raja janak kis jati ke the 

महाराज जनक निमी के पुत्र थे। निमी सूर्यवंशी और इक्षावकु के पुत्र थे। इस वंश का नाम विदेह वंश था। यह शाखा इक्षावकु के पुत्र निमी से उत्पन्न हुई थी।

विदेह वंश के दुसरे महान पुरुष मिथि जनक थे। इन्होने एक सुन्दर नगरी को बसाया था, जिसका नाम मिथि के नाम पर मिथिला रखा गया। महाराज जनक एक सूर्यवंशी राजा थे। इसलिए उनकी जाति क्षत्रिय है। 

राजा जनक और अष्टावक्र की कहानी Raja janak or ashtavakra ki kahani 

महाराज जनक स्वयं विद्वान थे। इसलिए उनके दरबार में ब्राह्मण और ऋषियों के मध्य शास्त्रार्थ होता रहता था। एकबार महाराज जनक ने घोषणा की,

कि जो भी उनके दरबार में आकार आचार्य बंदी को शास्त्रार्थ में पराजित करेगा उसे अपार धन संपत्ति दी जाएगी।

किन्तु जिसकी पराजय होगी उसे बंदी बनाकर कारागाह में डाल दिया जायेगा। यह घोषणा सुनकर कई ब्राह्मण आचार्य बंदी से 

शास्त्रार्थ करने आये किन्तु सभी की पराजय हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया। इसी प्रकार धन की लालच में आकर अष्टावक्र के पिता ऋषि कहोड़ जनक के दरबार में गए और आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ करने लगे।

किन्तु पराजित हो गए इसकारण ऋषि कहोड़ को भी बंदी बना लिया गया। जब ऋषि कहोड़ के 12 वर्षीय पुत्र अष्टवक्र को अपने पिता जी के बारे में ज्ञात हुआ

तो वे राजा जनक के दरबार में पहुँचे। किन्तु ऋषिपुत्र अष्टावक्र को देखकर सभी सभासद हँसने लगे कियोकि उनकी काया आठ जगह से टेड़ी थी।

उनकी टेड़ी काया और चाल को देख राजा जनक भी हँस पड़े। किन्तु तभी अष्टावक्र और जोर जोर से हँसने लगे। जिसे देखकर सभी सभासद

और राजा भोचक्के रह गए। महाराज जनक ने पूँछा ऋषि कुमार यह बात तो समझ में आती है, कि सभी लोग आपकी विचित्र काया देखकर हँस रहे है। किन्तु आप क्यों हँस रहे है?

महाराज में इसलिए हँस रहा हुँ, कि इस सभा में मुझे सभी चमार ही नजर आते है, यह सभा तो चमारों की सभा है। कियोकि आप सब लोग मेरी चमड़ी देखकर हँस रहे है।

आपको एक मनुष्य नहीं दिखाई देता है। आपकी सभा के सभी लोग चमार है, जो चमड़ी की परख कर रहे है और यहाँ शास्त्रार्थ हो रहा है अतः आप सभी मूर्ख है। इसकारण से में हँस रहा हुँ।

ऋषिपुत्र अष्टावक्र के उत्तर को सुनकर सभी लोग दंग रह गए। उस रात महाराज जनक को नींद भी नहीं आई। और दूसरे दिन वे ऋषि अष्टावक्र के पास गए और उन्हें आत्मज्ञान देने की बात कही।

लेकिन अष्टावक्र ने कहा मुझे गुरु दक्षिणा देनी पड़ेगी। और गुरु दक्षिणा में आपका मन चाहिए। महाराज जनक ने अपना मन संकल्प कर दिया।

जिससे ऋषि अष्टावक्र ने अपने पिता और अन्य ऋषियों को मुक्त कराया। अष्टवक्र ने आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित

करके ज्ञान का उपदेश दिया। इसके बाद अष्टावक्र ने महाराज जनक को आत्मज्ञान प्रदान किया। और उनके गुरु बने।

दोस्तों आपने इस लेख में राजा जनक का जीवन परिचय (Raja janak ka jivan Parichay) तथा राजा जनक की कहानी पड़ी। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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  1. शूर्पणखा की कहानी
  2. हनुमान जी के 108 नाम
  3. रानी कौशल्या की कथा




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