सीता माता की जन्म कथा Seeta Mata ki janm katha





सीता माता की जन्म कथा Seeta Mata ki janm katha 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, आजके इस लेख सीता माता की जन्म कथा (Seeta mata ki janm katha) में। दोस्तों इस लेख में आप सीता माता की जन्म कथा पड़ेंगे।

साथ ही आप जानेंगे की सीता कौन थी? सीता जी किसकी पुत्री थी? सीता किसका अवतार थी? तो आइये दोस्तों करते है, यह लेख शुरू सीता माता की जन्म कथा:-

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सीता माता की जन्म कथा

सीता कौन थी Seeta kon thi 

सीता माता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थी। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण उनको मिथलेश कुमारी कहके बुलाया जाता था।

सीता माता की माँ का नाम सुनयना देवी था। जो स्वयं वासुकी नाग की पुत्री थी। सीता माता का विवाह अयोध्या के महाराज दशरथ के सबसे बड़े पुत्र श्रीराम से हुआ था।

सीता एक आदर्श पुत्री कर्तव्यनिष्ठ बहु, तथा पतिव्रत नारी थी। इसलिए दुष्ट रावण उनको छू भी नहीं सकता था। माता सीता ने भगवान श्रीराम के साथ वन का रास्ता

चुना और हमेशा पति भक्ति और सेवा में व्यस्त रही। उन्होंने वन में कई दुखों का सामना किया किन्तु उनका विश्वास और भक्ति अटल थी उन्होंने साहस के साथ सभी चुनौतीयों को स्वीकार किया।

सीता माता की जन्म कथा

सीता जी किसकी पुत्री थी Seeta ji kiski putri thi 

दुनियाभर में 140 से अधिक रामायण अर्थात भगवान श्रीराम के जीवन की कथाएँ लिखी गई है। तथा लगभग सभी रामायणो में यह बताया गया कि सीता जी लंकापति रावण की पुत्री थी।

रावण तथा माता सीता से सम्बंधित कई ऐसी कथाएँ है, जिनसे यह प्रमाणित होता है, कि सीता जी लंकापति रावण की पुत्री थी। परन्तु रावण ने अपने मृत्यु के भय से सीता का त्याग किया था।

किन्तु कुछ रामायणो में कुछ अलग प्रकार से वर्णन मिलता है।सीता जी का पालन पोषण मिथिला के राजा जनक तथा उनकी महारानी सुनैना ने किया था।

सुनैना ने एक पुत्री को जन्म और दिया था जिसका नाम उर्मिला था। उर्मिला का विवाह भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण से हुआ था। राजा जनक के भाई की दो पुत्रियाँ थी जिनका विवाह भरत और शत्रुघ्न से हुआ था।

सीता किसका अवतार थी Seeta kiska avtar thi 

सीता माता रामायण की एक प्रमुख पात्र थी। जिनका विवाह स्वयं भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम से हुआ था। इसलिए माता सीता के रूप में स्वयं धन की देवी लक्ष्मी ने अवतार लिया था।

भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने रावण और कुम्भकरण के रूप में कैकसी के गर्भ से जन्म लिया। बचपन में ही रावण और कुम्भकरण ने ब्रम्हा जी की घोर तपस्या की

और वरदान प्राप्त किये तथा बड़े होने पर सबसे पहले रावण ने अपने ही भाई कुबेर से नाना सुमाली की मदद से लंका का राज छीन लिया और राक्षस सम्राज्य की स्थापना करके राक्षसों का अधिपति बन गया।

इसके बाद रावण ने ऋषि मुनियों राजाओं तथा जन साधारण को कष्ट देना शुरू कर दिया रावण तथा उसके अनुचरों के दुष्कर्म और अत्याचारों से नाग, गन्दर्भ, देवी, देवता ऋषि, मनुष्य सभी त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे

तब भगवान विष्णु ने राक्षसों को उनके पापों का दंड देने के लिए भगवान श्रीराम का अवतार लिया शेषनाँग ने लक्ष्मण का अवतार और लक्ष्मी माँ ने माता सीता का अवतार धारण किया था।

कई धार्मिक ग्रंथो में कहा जाता है, कि पूर्व जन्म में माता सीता एक महान ऋषि की पुत्री थी जिनका नाम वेदवती था। वेदवती ने रावण को उसके समूल नाश का श्राप दिया था और वेदवती ही सीता का रूप लेके अवतरित हुई थी। 

सीता माता की जन्म कथा Seeta Mata ki janm katha 

सीता माता की कई जन्म की कथाएँ प्रचलित है, क्योंकि अभी तक दुनियाभर में 140 से अधिक रामायण लिखी जा चुकी है। अद्भुत रामायण के अनुसार सीता माता की जन्म कथा निम्न प्रकार से है :-

अद्भुत रामायण के अनुसार बताया जाता है, कि सीता माता रावण की पुत्री है। एक समय की बात है, जब रावण ने घोर तपस्या करके महादेव शिव शंकर से चंद्रहास खड़ग प्राप्त की।

तब वह अपने आप को अधिक शक्तिशाली समझने लगा। रावण ने ऋषि मुनियों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए और वह अत्याचार करता हुआ हिमालय पहुँच गया। जहाँ पर एक सुंदर कन्या तपस्या में लीन थी।

वह इतनी सुंदर थी कि रावण उस पर आसक्त हो गया तथा कामवासना से प्रेरित होकर उस सुंदर कन्या के पास पहुँचा तथा उसकी तपस्या भंग करके उससे उसका परिचय जानना चाहा।

तब वह सुंदर कन्या बोली हे! लंकापति रावण मेरा नाम वेदवती है। मैं बृहस्पति ऋषि के पुत्र कुशध्वज की पुत्री हुँ, और मेरी माता का नाम कलावती है।

हे! राक्षसराज जब मैं विवाह के योग्य हुई तब नाग, असुर, देवता, गन्धर्व सभी ने मुझसे विवाह करने की इक्षा प्रकट की। किंतु मेरे पिता चाहते थे कि मेरा विवाह केवल परम परमेश्वर भगवान विष्णु से हो।

इसलिए एक बार किसी राक्षस ने मेरे पिताश्री का वध कर दिया और मेरी माताश्री भी मेरे पिताश्री के चिता के साथ सती हो गई। मैं अपनी पिता की इच्छा लिए हुए ही भगवान विष्णु की तपस्या कर रही हूँ,

किंतु मैंने अपने तपोबल के कारण तुम्हारी गलत भावना को जान लिया है। तब रावण ने कहा हे! सुंदरी में त्रिलोक विजेता रावण हूँ, मेरे समान तीनों लोको में कोई भी नहीं है, तुम मेरी रानी बन जाओ।

इतना कहके रावण ने उस सुंदरी को अपने पास खींचना चाहा और हाथ पकड़ लिया। रावण के इस दुष्क्रत्य से उस सुंदरी को क्रोध आ गया उसने रावण को श्राप दे दिया और कहा

तुमने मुझे मेरी इच्छा के विरुद्ध अपनी गलत भावना के कारण मेरे शरीर का स्पर्श किया है, मैं तुम्हें श्राप देती हूँ, कि तुम्हारे और तुम्हारे संपूर्ण राक्षस कुल का अंत का कारण तुम्हारी पुत्री अर्थात में बनूँगी।

इतना कहकर वह तपस्वी सुंदर कन्या धरती में समा गई। इसके बाद कई वर्ष गुजर गए। रावण इस बात को भूल गया। एक बार देवासुर संग्राम चल रहा था, राक्षस और देवताओं में युद्ध हो रहा था।

राक्षस ऋषि मुनियों पर अत्याचार कर रहे थे यज्ञ, हवन नहीं हो पा रहे थे। इसी प्रकार से रावण एक बार दंडकारण्य वन में तपस्या कर रहे ऋषि मुनियों के आश्रम में पहुँचा।

जहाँ पर श्रेष्ठ ऋषि मुनि गृत्समद थे, जो लक्ष्मी माँ को पुत्री रूप में पाने के लिए हर दिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अग्र भाग से एक कलश में दूध की कुछ बूंदे डालते थे। रावण ने उस आश्रम के सभी

ऋषि मुनिओं को मारकर उनका रक्त उस कलश में भर लिया तथा लंका आ गया। उसने यह कलश रानी मंदोदरी को किसी गुप्त स्थान पर रखने के लिए दे दिया

और कहा इसमें विष है, तथा स्वयं किसी पर्वत पर चला गया। रानी मंदोदरी रावण के अत्याचारों से परेशान हो गई थी। इसलिए उसने विष समझ कर उस कलश का द्रव्य पी लिया।

किन्तु उसकी मृत्यु के बदले उसने गर्भ धारण कर लिया जिससे मंदोदरी परेशान हो गई। इस रहस्य का किसी को पता ना चल पाए इसलिए उसने गर्भ के जीवद्रव्य को

एक कलश में भरकर बहुत दूर राजा जनक के राज्य में भूमि में गड़वा दिया। जब राजा जनक ने अकाल से परेशान होकर यज्ञ करवाया तथा धरती पर हल चलाया

तो उनका हल धरती पर गड़ गया वहाँ पर खुदाई की गई तब धरती में से एक संदूक निकला जिसमें एक छोटी सुन्दर कन्या थी। राजा जनक ने उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया और उसका नाम सीता रखा।

दोस्तों इस लेख में आपने माँ सीता की जन्म कथा (Seeta Mata ki janm katha) पढ़ी।आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। 

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