राजा असमंजस की कहानी Story of Raja Asmanjas






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राजा असमंजस की कहानी Story of Raja Asmanjas 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के हमारे इस लेख राजा असमंजस की कथा (Story of king Asmanjas) में। दोस्तों इस लेख में आप इक्ष्वाकु वंश के

महान राजा असमंजस की कथा पड़ेंगे कि राजा असमंजस कौन थे? उनके पिता का नाम क्या है? तो दोस्तों आइए जानते हैं, राजा असमंजस की कथा:-

महर्षि बाल्मीकि कौन थे

राजा असमंजस की कहानी


राजा असमंजस कौन थे Raja Asmanjas kon the 

राजा असमंजस इक्ष्वाकु वंश के महान , दयालु, पराक्रमी तथा प्रजावत्सल राजा थे। राजा असमंजस इक्ष्वाकु वंश के महान राजा सगर के पुत्र थे। इनकी माता का नाम केशिनी था। इनकी एक और छोटी माता थी जिनका नाम 

सुमति था। माता सुमति के साठ हजार पुत्र थे। राजा सगर को यह सभी पुत्र महर्षि भृगु के आशीर्वाद से प्राप्त हुए थे। जो अज्ञानी, दुराचारी तथा दुष्ट प्रवृति के थे। किन्तु कई विधाओं में पारंगत भी थे। 

राजा असमंजस की कथा Raja Asmanjas ki katha 

असमंजस इक्ष्वाकु कुल के महान सम्राट राजा सगर के पुत्र थे। जिनका जन्म महर्षि भृगु के आशीर्वाद स्वरुप हुआ था। महाराज सगर की दो रानियाँ थी, जिनका नाम केसिनी और छोटी का नाम सुमति था।

राजा सगर को कई वर्षों तक कोई संतान प्राप्त नहीं हुई। अतः संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने हिमालय पर्वत पर जाकर तपस्या प्रारंभ कर दी।

जिससे प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी बड़ी महारानी एक पुत्र को जन्म देगी। तथा छोटी महारानी के साठ पुत्र उत्पन्न होंगे।

राजा सगर के सभी पुत्र दुराचारी और दुष्ट प्रवृत्ति के थे। असमंजस भी एक दुष्ट राजकुमार था। असमंजस राज्य के बालको को पकड़कर नदी में फेंक दिया करता था।

इसीलिए एक दिन महाराज सगर ने उसे अपने राज्य से निकल जाने का आदेश दे दिया। असमंजस अपने पिता का राज्य त्याग कर जंगल में चला गया और अपनी करनी पर पछताने लगा।

असमंजस ने जंगल में घोर तपस्या प्रारंभ कर दी और सन्यास रूप धारण कर लिया। जिससे उनके सारे पाप मुक्त हो गए और उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।

अयोध्या में राजा सगर अपने साठ हजार पुत्रों को लेकर चिंतित थे कि उनके पश्चात उनके राज्य को कौन संभालेगा? कौन बनेगा इस राज का उत्तराधिकारी?

तभी देवर्षि नारद महाराज सगर के सामने प्रकट हुए और महाराज सागर को अश्वमेध यज्ञ करने का सुझाव दिया। जिससे महाराज सगर की कीर्ति सदा के लिए अमर हो जाए।

जब असमंजस को इस बात का ज्ञान हुआ कि महाराज सगर अश्वमेध यज्ञ करने जा रहे हैं। तो असमंजस अयोध्या पहुंचे और  महाराज सगर को प्रणाम करके बोले हे! महाराज हे! पिता श्री

आप अपने साठ हजार पुत्रों के स्वभाव के बारे में जानते हैं। इसलिए आप अश्वमेध यज्ञ का विचार त्याग दीजिये। अश्वमेध यज्ञ  हमारे हित में नहीं है।

अश्वमेध यज्ञ करने से अवश्य ही कुछ अनिष्ट होगा। किन्तु महाराज सगर ने कहा मुझे अश्वमेध यज्ञ करने का सुझाव देवर्षि नारद ने दिया है, वे हमारे शत्रु नहीं है।

किंतु असमंजस ने कहा मुझे देवर्षि नारद के सुझावों में किसी षणयंत्र की गंध आ रही है। इस कथन पर महाराज सगर ने असमंजस को वहाँ से जाने के लिए कहा।

महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ का दायित्व अपने पुत्र कर्मवीर को सौंपा। राजकुमार कर्मवीर के नेतृत्व में अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चारों दिशाओं में घूमने लगा।

कई जगहों पर युद्ध हुए तो कई जगहों पर राजाओ ने राजा सगर की अधीनता स्वीकार कर ली। और यज्ञ का घोड़ा वापस राजधानी लौटने लगा।

तो देवर्षि नारद इंद्रलोक गए और देवराज इंद्र को महाराज सगर के अश्वमेध यज्ञ के बारे में बताया। देवराज इंद्र को लगा की महाराज सगर इंद्रलोक पर भी आक्रमण करके इंद्रासन छीन लेंगे।

इसलिए देवराज इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा रात्रि में चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब सुबह हुई तो घोड़ा नहीं था,

इसलिए महाराज सगर के साठ हजार पुत्र चिंतित हो गए और घोड़े को खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे। कपिल मुनि के आश्रम में घोड़े को बंधे हुए देख कर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को लगा

कि यह मुनि ही चोर है, और उस मुनि को बुरा भला कहने लगे। मुनि कपिल महाराज सगर के साठ हजार पुत्रों के अपशब्दों से क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपनी क्रोध की ज्वाला से ही साठ हजार पुत्रों को जला दिया।

जब कई दिनों तक घोड़ा और साठ हजार पुत्रों का पता नहीं चला तो असमंजस अपने भाइयों और घोड़ा को खोजने के लिए निकल पड़ा।

और कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर अपने साठ हजार भाइयों की राख का ढेर देख उसका ह्रदय दया, करुणा और वेदना से भर गया।

राजा असमंजस में अपने भाइयों की दृष्टता की क्षमा कपिल मुनि से माँगी। कपिल मुनि ने कहा कि तुम्हारे साठ हजार भाइयों को मोक्ष तब मिलेगा जब गंगा माँ इस राख को अपने साथ बहा ले जाएंगी।

और गंगा को धरती पर लाने का श्रेय आपके ही पौत्र महाराज भागीरथ को प्राप्त होगा। कपिल मुनि ने कहा हे! वत्स असमंजस तुम यह यज्ञ का घोड़ा ले जाओ और अश्वमेघ यज्ञ संपन्न करो।

असमंजस यज्ञ का घोड़ा अपनी राजधानी लेकर आता है और महाराज सगर को पूरा वृतांत सुनाता है। महाराज सगर असमंजस की बात ना मानकर बहुत पछताते हैं। अश्वमेघ यज्ञ संपन्न होता है।

और असमंजस को अयोध्या का महाराजा बना दिया जाता है। असमंजस ने कई वर्षों तक अयोध्या पर शासन किया इसके बाद उसका पुत्र अंशुमान राजा बना जिसका पुत्र दिलीप था।

और दिलीप का पुत्र था "भगीरथ" भगीरथ एक महान राजा था जिसने कठोर तप करके गंगा माँ को धरती पर पहुँचाया और अपने साठ हजार पितरो को मोक्ष की प्राप्ति कराई।

दोस्तों इस लेख में आपने राजा असमंजस की कथा (Story of king Asmanjas) पड़ी आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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  2. सुमित्रा का जीवन परिचय
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