आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 Biography of Acharya Ramchandra Shukla class 10
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रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 Biography of Ramchandra Shukla class 10
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के हमारे इस लेख आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 (Biography of Acharya Ramchandra shukl) में।
दोस्तों इस लेख के द्वारा आप आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय के साथ ही उनका साहित्य में योगदान, प्रमुख रचनाएँ, उनकी भाषा और शैली के बारे में भी जान पाएंगे।
दोस्तों आप यहाँ से कक्षा 10th का कक्षा 12th में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय लिखने का आइडिया भी ले सकते हैं।
तो आइए दोस्तों करते हैं, आज का यह लेख शुरू आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय और जानते है उनके बारे में:-
रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय Biography of Ramchandra Shukla
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के उच्च कोटि के निबंधकार और समालोचक माने जाते हैं, जिन्होंने अपनी अमूल्य रचनाएँ हिंदी साहित्य को प्रदान की है।
ऐसे महान साहित्यकार का जन्म 1984 ईसवी में बस्ती नामक जिले के अगौना नामक ग्राम में हुआ था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिताजी का नाम चंद्रबली शुक्ल तथा माता जी का नाम निवासी देवी था।
उनके पिता कानूनगो के पद पर मिर्जापुर में थे इसलिए वे चाहते थे कि उनका बेटा भी उन्ही के विभाग में नौकरी करें। शुक्ल जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव में ही की तथा 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली,
किंतु कुछ ही समय पश्चात उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और मिर्जापुर चले गए। और मिर्जापुर के एक मिशन स्कूल में उन्होंने चित्रकला के अध्यापक के रूप में अपना कार्यभार संभाला।
इसी समय से ही उनके लिखे गए लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे थे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने घर पर ही अध्ययन करके विभिन्न भाषाओं हिंदी, बंगला, संस्कृत, फारसी आदि पर अपनी पकड़ मजबूत की।
तथा रचनाएँ लिखने लगे जो आंनद कादंबिनी में प्रकाशित होने लगी। कुछ समय के पश्चात वे नागरी प्रचारिणी सभा से जुड़ गए और उसमें शब्द सागर के सहायक संपादक के तौर पर कार्य करने लगे।
इसके बाद वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Kashi hindu University) में हिंदी के अध्यापक नियुक्त हुए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को सबसे पहले कविताएँ प्रदान की थी।
इसके साथ ही वह कहानीकार भी बनना चाहते थे, किंतु उनकी प्रखर बुद्धि उनको निबंधात्मकता और आलोचनात्मकता की ओर ले गई।
निबंध और आलोचना में उन्होंने एक ऐसा स्थान बनाया है जो अभी तक अमिट है। ऐसे आलोचक निबंधकार तथा संपादक का देहांत 2 फरवरी 1941 को हृदय गति रुक जाने के कारण हो गया।
शुक्ल जी का साहित्य में योगदान Shukla ji ka Sahitya mein yogdan
आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपने संपूर्ण जीवन में साहित्य की सेवा में ही लगे रहे। उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी अमूल्य कृतियाँ प्रदान की।
इस कारण उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी अलग पहचान भी बना ली थी। शुक्ल जी का साहित्यिक जीवन काव्य रचना से प्रारंभ हुआ था और इसके बाद बे एक निबंधकार संपादक और समालोचक के रूप में उभरे।
उन्होंने आनंद कादंबिनी, नागरी प्रचारिणी सभा, हिंदी शब्द सागर जैसी पत्रिकाओं में संपादक का काम भी किया। हिंदी साहित्य में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा लिखे गए साहित्यिक मनोविकार निबंध एक अलग ही पहचान रखते हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ Aacharya Ramchandra Shukla ki rachnaen
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को कविताएँ, निबंध आलोचना आदि प्रदान की है, जिनमें से प्रमुख रचनाओं का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है:-
निबंध - आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को समीक्षात्मक और भावप्रधान दोनों प्रकार के निबंध प्रदान किए हुए हैं। उनके निबंध संग्रह चिंतामणि और विचारवीथी के नाम से प्रकाशित हैं।
आलोचना - रामचंद्र शुक्ल को आलोचना का सम्राट कहा जाता है। रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार की आलोचनाएँ प्रदान की हैं, जिनमें से प्रमुख रसमीमांसा, त्रिवेणी तथा सूरदास है।
इतिहास - आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी के विकास का एक प्रमाणिक ग्रंथ लिखा है, जिसको हिंदी साहित्य का इतिहास के नाम से जाना जाता है।
संपादन - आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक बहुत ही कुशल संपादक भी रहे हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने तुलसी ग्रंथावली, जायसी ग्रंथावली, हिंदी शब्द सागर आनंद कादंबिनी, नागरी प्रचारिणी सभा, भ्रमरगीत सार आदि में प्रमुख संपादक के रूप में कार्य किया है।
रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली Ramchandra Shukla ki Bhasha Shaili
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली को निम्न प्रकार से समझाने का प्रयास किया गया है:-
भाषा (Bhasha) - आचार्य रामचंद्र शुक्ल का कई भाषाओं पर अच्छा प्रभुत्व रहा है। उन्होंने अधिकतर भाषाओं का अध्ययन घर पर ही बैठ कर किया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शुद्ध साहित्यिक भाषा है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता भी देखने को मिलती है।
शुक्ल जी की भाषा व्यवहारिक और सरल प्रकार की है, उनकी रचनाओं में जहाँ - तहाँ अरबी, फारसी, उर्दू आदि के भी शब्द दिखाई देते हैं।
उनकी भाषा में ग्रामीण शब्द जैसे बाँह, थप्पड़ आदि के साथ ही मुहावरे लोकोक्ति आदि का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है।
शैली (Shaily) - आचार्य रामचंद्र शुक्ल की शैली विवेचनात्मक और संयत प्रकार की है। जब वे किसी प्रकार की बात करते हैं तो उस को समझाते हुए चलते हैं
इसलिए उनकी शैली को निगमन शैली भी कहा जाता है। साधारण तौर से देखा जाए तो उनकी रचनाओं में निम्न शैलियाँ प्रमुख रूप से दिखाई देती हैं:-
आलोचनात्मक शैली - आलोचनात्मक शैली के जन्मदाता रामचंद्र शुक्ल जी हैं। उनकी यह शैली भावात्मक और सेद्धांतिक दोनों प्रकार की है। कविता क्या है? तुलसी की भावुकता निबंध आदि इसके उदाहरण हैं।
व्याख्यात्मक शैली - आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक अध्यापक भी थे, इसलिए वह हर जगह पर उस विषय को समझाते हुए चलते थे, जो विषय कठिन लग रहे हैं। यह उनकी सरलतम शैली है।
विवेचनात्मक शैली - आचार्य रामचंद्र शुक्ल की यह शैली प्रमुख शैली है, जिसका प्रयोग निबंध में दिखाई देता है। शुक्ल जी की इस शैली में वैचारिक
और गंभीरता स्पष्ट झलकती है, जिसके कारण कुछ वाक्य बड़े भी हो जाते हैं। चिंतन की गंभीरता के कारण कहीं-कहीं पर कलिष्टता और बोझिलता भी दिखाई देती है।
इसके साथ ही उनकी शैलियों में भावात्मक शैली, वर्णनात्मक शैली हास्य व्यंग्यात्मक शैली भी देखने को मिलती है। इन सभी शैलियों का प्रयोग उन्होंने अपनी रचनाओं में अलग प्रकार से उन्नत तरीके से किया है।
साहित्य में स्थान Sahitya Mein sthan
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हृदय से एक कवि थे और मस्तिष्क के एक आलोचक थे। इसके साथ ही वह एक अध्यापक भी थे। शुक्ल जी ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के द्वारा समालोचना में एक अद्भुत
क्रांति उत्पन्न कर दी इसके साथ ही वे निबंध के क्षेत्र में भी प्रतिभाशाली लेखक सिद्ध हुए। इनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही हिंदी गद्य युग को शुक्ल युग के नाम से संबोधित किया जाता है।
दोस्तों आपने इस लेख में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 (Biography of Ramchandra shukl) पढ़ा आशा करता हूं आपको यह लेख अच्छा लगा होगा
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Are enka nidhn kab hua
ReplyDeleteSan 1941esvi me Inka niddhan hua
DeleteYe mare kab
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