कबीरदास का जीवन परिचय Class 10 Kabeerdas ka jivan parichay class 10th
कबीरदास का जीवन परिचय class 10 Kabeerdas ka jivan parichay class 10th
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख कबीरदास का जीवन परिचय class 10 (Kabirdas ka jivan Parichay) में। दोस्तों कबीरदास का जीवन परिचय
अक्सर हाईस्कूल (High school) की परीक्षाओं में पूँछे जाते है। इसलिए यहाँ पर हम कबीरदास का जीवन परिचय class 9 और कबीरदास का जीवन परिचय class 10 के लिए लेकर आये है,
जो सरल भाषा में लिखा गया है। आप यहाँ से कबीरदास का जीवन लिखने का आईडिया ले सकते है। तो आइये दोस्तों करते है शुरू यह लेख कबीरदास का जीवन परिचय class 9:-
गजानन माधव मुक्तबोध का जीवन परिचय
कबीरदास का जीवन परिचय class 10 Kabeerdas ka jivan parichay class 10th
कबीर दास एक प्रसिद्ध संत, समाज सुधारक (Social reformer) तथा महान कवि थे, जिन्होंने अपने जीवन में पाखंड, मूर्ति पूजा,अंधविश्वास का घोर विरोध किया।
संत कबीर दास ने ईश्वर अल्लाह दोनों को एक कहा। भक्ति काल में जन्मे कबीर दास जी ईश्वर के एक परम भक्त थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement) में अपना अमूल्य सहयोग दिया था।
भक्ति आंदोलन के द्वारा ही कबीर दास जी ने पाखंड अंधविश्वास, कुरीतियाँ का विरोध किया। कबीरदास एक छोटी जुलाहा जाति के थे।
इसलिए उन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों ने ही बहुत प्रताड़ित किया था। लेकिन कबीरदास जी हिंदू और मुसलमान दोनों को ही अपना भाई मानते थे
और कहते थे, ईश्वर एक है जिनका नाम अल्लाह और भगवान है। कबीर दास जी ने अपने काव्य के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म की स्तुति जन-जन तक पहुँचाने का पूरा प्रयास किया है।
कबीरदास का जीवन परिचय class 9 Kabeerdas ka jivan parichay class 9th
कबीरदास भक्तिकाल (Devotional period) के संत समाज सुधारक तथा कवि थे। कई कहानियों के आधार पर बताया जाता है,
कि कबीर दास को एक विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया था और लोक लाज के कारण उस विधवा ब्राह्मणी ने कबीर दास को काशी में लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख दिया था। किंतु कुछ लोगों का मानना है,
कि कबीर दास जी का जन्म ही नहीं हुआ था कबीर दास जी एक कमल के फूल पर अवतरित हुए थे। इसलिए लोग कबीर दास जी को भगवान का अवतार मानते है।
इतिहासकारों, साहित्यकारों के अनुसार कबीर दास जी का जन्म 1398 काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के घर हुआ था, वह विधवा थी
इसलिए लोकलाज से बचने के लिए उस ब्राह्मणी ने कबीरदास जी को लहरतारा के समीप सुबह की बेला में छोड़ दिया। लहरतारा नामक तालाब के पास से जब एक मुस्लिम दंपत्ति भीरू और नीमा गुजर रहे थे,
तब उनकी दृष्टि बालक कबीर पर पड़ी है और वह उसे अपने घर ले आए। कबीर दास जी बचपन से ही भगवान श्री राम का भजन करते थे
और उन्हें अपना सब कुछ मानते थे। कबीर दास जी में बचपन से ही भक्ति के गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे वे हमेशा श्री राम नाम का जप किया करते थे।
कबीरदास के माता-पिता को कई बार कबीरदास पर भूत प्रेत का साया होने का भय हुआ, जिसके लिए उन्होंने हकीम और ओझाओं का सहारा लिया
किंतु सभी ने यह कह दिया कि कबीरदास बिल्कुल सही है, उन्हें किसी प्रकार का रोग या भूत प्रेत का साया नहीं है। कबीर दास जी अनपढ़ थे वह कभी किसी के पास शिक्षा ग्रहण करने नहीं गए
कियोकि वह रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे। किंतु रामानंद उस समय नीची जाति वाले लोगों को अपना शिष्य नहीं बनाते थे।
फिर भी कबीरदास तो रामानंद को अपना गुरु मानते थे, कहा जाता है, कि कबीर दास ने छोटी उम्र में ही रोने की लीला कर रामानंद को अपना गुरु बना लिया था।
साधु संगति और ईश्वर की भक्ति के द्वारा ही उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। अपना गुजारा करने के लिए कबीर दास जी ने कपड़े बुनने का काम शुरू कर दिया
उससे जो कुछ भी धन मिलता था उससे ही अपना और अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे। कबीर दास जी का लोई नामक स्त्री से विवाह हुआ
और उनकी दो संतानें हुई जिनका नाम कमाल और कमाली था। कबीर दास जी जुलाहे का काम करते और भगवान का भजन करते हुए 120 वर्ष की आयु में परलोक सिधार गए।
कबीर दास एक समाज सुधारक के रूप में Kabir Das as a social worker
कबीर दास जी एक महान दार्शनिक तथा रहस्यवादी समाज सुधारक थे। समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की कुरीतियों का उन्होंने डटकर विरोध किया है।
कबीर दास जी ने हिंसा का विरोध करते हुए कहा,कि किसी भी जीव को नहीं मारना चाहिए और ना ही उसका मांस खाना चाहिए।
किसी भी जीव का मांस खाने से व्यक्ति पाप का भागी होता है। कबीर दास जी ने जात-पात का भी भयंकर विरोध किया है और कहा है इंसान को जात-पात के नाम पर नहीं लड़ना चाहिए।
हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर ने हम सबको बराबर बनाया है। यहाँ ना कोई हिंदू है ना कोई मुसलमान है हम सब यहाँ पर एक समान भाई - भाई ही हैं। कबीर दास जी ने मूर्ति पूजन का खंडन करते हुए
कहा है, कि अगर पत्थर की मूर्ति पूजने से ईश्वर मिलते हैं, तो में पहाड़ पूजने के लिए तैयार हुँ, इसलिए किसी भी मूर्ति पूजन से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।
ईश्वर की प्राप्ति सच्चे मन, भक्ति और सच्चे ज्ञान के द्वारा ही होती है। पाखंड का विरोध करते हुए कबीर दास जी ने कहा है, कि जो लोग दिन में उपवास रखते हैं,
वही रात्रि में मदिरा और माँस का सेवन करते हैं, जो लोग भगवान की पूजा अर्चना मंदिर में जाकर करते हैं वही लोग अपने माता-पिता तथा अन्य लोगों को दुख देते हैं।
ऐसे दिखावे और पाखंड से कुछ नहीं होगा, ईश्वर तभी मिलेंगे जब आपके काम अच्छे होंगे। कबीर दास जी ने सभी लोगों को कर्म, ज्ञान परोपकार और महानता की ही शिक्षा दी है।
कबीरदास की प्रमुख रचनाएँ Compositions of Kabir Das
कबीर दास की मुख्य कृति बीजक है , छंद पर आधारित होने के कारण इसके तीन भाग है:-
- साखी - साक्षी संस्कृत भाषा के शब्द साक्षी का तद्भव रूप है, कबीर दास जी के सिद्धांतों, नियमों तथा ज्ञान को सोरठे छंद से अभिभूत कर साखी में संग्रहित किया है।
- सबद - सबद कबीर दास की एक संगीतमय रचना है। इसमें भावों, प्रेम तथा साधना की अभिव्यक्ति की गई है।
- रमैनी - रामैनी में कबीर दास जी के रहस्यमयी और धार्मिक विचारों का वर्णन किया गया है, जो चौपाई छंद में लिखे गए हैं।
इसके साथ ही कबीर दास जी ने कथनी करणी का अंग ,चाणक का अंग, राम बिनु तन को ताप न जाई, कबीर के पद, भेष का अंग, कामी का अंग,नीति के दोहे, कबीर की साखियाँ आदि रचनाओं को लिखा है।
कबीरदास का भाव पक्ष Kabeerdas ka bhav paksh
कबीर दास जी भक्ति काल के एक महान समाज सुधारक तथा संत थे। इसलिए उन्होंने हमेशा निराकार ब्रह्म की भक्ति और पूजा की।
कबीर दास जी का मानना था, कि सच्चे प्रेम और ज्ञान के द्वारा ईश्वर हमें अवश्य मिल सकते हैं। कबीर दास जी ने कहा, कि ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रभु स्मरण और गुरु स्मरण दोनों अति आवश्यक है। इसलिए कबीर दास जी ने गुरु को ईश्वर से भी बड़ा स्थान देकर कहा है:-
गुरु, गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।।
कबीर दास जी ने नारी और माया दोनों का ही भयंकर विरोध किया है, और समाज सुधारक की भूमिका निभाते हुए उन्होंने पाखंड और ठग और भेषधारी लोगों पर तीक्ष्ण कटाक्ष भी किया है।
कबीर दास जी हमेशा मूर्ति पूजा, तिलक माला आदि बाहरी पाखंड का डटकर विरोध किया करते थे। कबीर दास जी का मानना था।
बाहरी पाखंड और आडंबर से ईश्वर प्राप्त नहीं होते बल्कि ईश्वर सच्चे ज्ञान और सच्ची भक्ति के द्वारा ही प्राप्त होते हैं। कबीर दास जी ने कहा है, हिंदू और मुसलमान दोनों भाई-भाई हैं, जबकि अल्लाह और ईश्वर दोनों एक ही हैं।
कबीर दास जी का कला पक्ष Kabeerdas ka kala paksh
वास्तव में कबीर दास जी अनपढ़ थे वे कभी भी किसी भी विद्यालय में या आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए नहीं गए। कबीर दास जी ने अपना गुरु रामानंद को बनाया था,
किन्तु कबीर दास जी को सच्चा ज्ञान ईश्वर की भक्ति और साधु संगति के द्वारा ही प्राप्त हुआ था। इसलिए कबीर दास जी की भाषा साधुक्कड़ी भाषा कहलाती है।
कबीर दास जी की भाषा को खिचड़ी भाषा भी कहा जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में राजस्थानी, पंजाबी गुजराती, अरबी, फारसी और हिंदी आदि के शब्दों का मिलाजुला प्रयोग किया है।
ईश्वर की भक्ति करने के कारण उन्होंने बहुत से शब्दों को अपनी वाणी में मिला लिया है, इसीलिए कबीर दास जी की रचनाओं में विभिन्न प्रकार की भाषाओं के शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है।
कबीरदास का साहित्य में स्थान Kabeerdas ka sahitya me sthan
हिंदी साहित्य में कई महान कवियों और साहित्यकारों का उदय हुआ है, किंतु जब बात करते हैं, कबीर दास जी की तो कबीर दास जी उन सब कवियों में सबसे महान है,
क्योंकि वह कवि होने के साथ ही एक समाज सुधारक तथा एक महान संत भी थे। भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा के कवि होने के नाते कबीर दास जी
जीवनभर आडंबर और पाखंड के खिलाफ लड़ते रहे। कबीर दास जी ने हमेशा लोगों को दिखावा, आडंबर तथा कुरीतियों से बचने तथा सत मार्ग और धर्म पर चलने की सलाह दी।
इसीलिए कहा जा सकता है, कि अभी तक हिंदी साहित्य में कबीरदास जी जैसा संत, मानवतावादी तथा समाज सुधारक पैदा ही नहीं हुआ। अतः एक समाज सुधारक, संत तथा कवि के रूप में कबीर दास जी का साहित्य में सबसे प्रमुख स्थान है।
दोस्तों आपने यहाँ कबीरदास का जीवन परिचय कक्षा 10 (Kabeerdas ka jivan parichay class 10th)
कबीरदास का जीवन परिचय कक्षा 9 Kabeerdas ka jivan parichay class 9th पड़ा। आशा करता हूँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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ReplyDeletehis fathere name is neeru and mother is neema
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