अवतार की परिभाषा Definition of avatar

अवतार की परिभाषा Definition of avatar

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख अवतार की परिभाषा (Definition of avatar) में। दोस्तों इस लेख में

आप अवतार की परिभाषा तथा काल ब्रम्ह के अवतारों की जानकारी प्राप्त करेंगे। तो आइये दोस्तों करते है, शुरू यह लेख अवतार की परिभाषा:-


इसे भी पढ़े:भगवान विष्णु के 10 अवतार


अवतार की परिभाषा


अवतार की परिभाषा Definition of avatar

अवतार का अर्थ ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर उतरना होता है, जिसे विशेषकर शुभ शब्द उन उत्तम आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जो धरती पर विभिन्न अद्भुत कार्य करते हैं

और उनको परमात्मा की ओर से भेजा हुआ माना जाता है या फिर वह स्वयं ही परमात्मा होते है। श्रीमद् भागवत अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16 से 17 में 3 महापुरुषों (प्रभुओं) का ज्ञान।

1 क्षर जिसे ब्रह्म भी कहा जाता है, जिसका ओम ( ॐ ) नाम साधना का होता है इसका प्रमाण गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में है।

2 अक्षर पुरुष जिसको परब्रह्म के नाम से जाना जाता है, जिसकी साधना का मंत्र तत जो सांकेतिक है और इसका प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है।

3 उत्तम पुरुष तू: अन्य श्रेष्ठ पुरुष परमात्मा जो उपरोक्त दोनों पुरुषों (क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष) से अन्य है। वह परम अक्षर पुरुष है जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 1 के उत्तर में अध्याय 8 के श्लोक 3 में कहा है,

कि वह परम अक्षर ब्रह्म है, जिसका जाप सत है, जो सांकेतिक हैं। इसी परमेश्वर की प्राप्ति से साधक को परम शांति तथा सनातन परमधाम प्राप्त होता है।

इसका प्रमाण गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में यह परमेश्वर ( परम अक्षर ब्रह्म ) गीता ज्ञान दाता से भिन्न है। अवतार दो प्रकार के होते हैं जैसे कि ऊपर बताया गया है।


काल ब्रह्म के अवतारों की जानकारी Information about avtar of Kaal Brahma

भगवत गीता अध्याय 4 का श्लोक नंबर 7 में लिखा है:- 

यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।।

अर्थात जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब में अपना अंश अवतार रखता हूँ, अर्थात उत्पन्न होता हूँ।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 4 श्लोक नंबर 7 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है, कि जब-जब धर्म में घृणा उत्पन्न होने लगती है, धर्म की हानि होने लगती है

और अधर्म की वृद्धि होती है, तो में स्वयं (ब्रह्म क्षर पुरुष) अपने अंश अवतार सृजन करता हूँ, अर्थात उत्पन्न होता हूँ।

जैसे भगवान श्री रामचंद्र जी तथा भगवान श्री कृष्ण जी को काल ब्रह्म ने ही पृथ्वी पर उत्पन्न किया था, जो स्वयं श्री विष्णु जी के अवतार माने जाते हैं।

इसके अलावा इनके 8 अवतार और कहे गए हैं, जो श्री विष्णु स्वयं नहीं आये वे अपने लोक से अपनी कृपा मात्र पवित्र आत्मा को भेजते हैं। वह भी अवतार कहलाते हैं,

कहीं-कहीं पर 25 अवतारों का भी उल्लेख पुराणों में मिलता है। काल ब्रह्म (क्षर पुरुष) के भेजे हुए अवतार पृथ्वी पर बड़े अधर्म का नाश कत्लेआम अर्थात संहार करते रहते हैं।

जैसे कि भगवान श्री रामचंद्र जी कृष्ण जी, परशुराम जी श्री नि:कलंक जी (कल्कि अवतार ) जो अभी आना बाकी है, यह कलयुग के अंत में आएगा।

यह सभी अवतार घोर संहार करके ही अधर्म का नाश करते हैं। सभी अवतार धरती पर शांति स्थापित करने की चेष्टा करते हैं,

किंतु शांति की अपेक्षा अशांति ही बढ़ती जाती है, जिस प्रकार से रामचंद्र जी ने रावण को मारने के लिए युद्ध किया था, जिसमें करोड़ों लोग मारे गए,

जिनमें कुछ लोग धर्मी थे तथा कुछ अधर्मी फिर उनकी पत्नियाँ तथा छोटे-बड़े बच्चे शेष रह गए। उनकी विधवा पत्नियों को अन्य व्यक्तियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया, जीवन निर्वाह करने की समस्या उत्पन्न होने लगी

अर्थात शांति के स्थान पर अशांति के अनेक कारण उत्पन्न हो गए। इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने और भगवान परशुराम जी ने भी शांति स्थापित करने का प्रयास किया था किंतु वास्तव में अशांति ही उत्पन्न हुई।

इसी क्रम में दसवां अवतार भी ईश्वर के द्वारा धारण किया जाएगा जो कल्कि अवतार होगा तथा यह राजा हरिश्चंद्र वाली आत्मा होगी,

जो संभल नगर में श्री विष्णु दत्त शर्मा के घर में जन्म लेगा उस समय तक सभी मानव अत्याचारी और अन्यायी हो जाएंगे,

उस समय जो भी व्यक्ति भगवान की पूजा-अर्चना करेगा, भगवान से डरेगा, अच्छे कर्म करेगा, वह जीवित बचेंगा तथा अन्य सभी

अधर्मी पुरुष मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। यह सभी अवतार अधर्म का नाश करने के लिए तथा शांति स्थापना करने के लिए अवतरित हुए हैं। 

दोस्तों आपने इस लेख में अवतार की परिभाषा (Definition of avatar) के साथ काल ब्रह्म के अवतारों की जानकारी पढ़ी। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

  • इसे भी पढ़े:- 

  1. सप्तऋषियों के नाम मन्त्र Information of Saptrishi
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