सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में Sumitranandan pant poem in hindi

सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में

सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में Sumitranandan pant poem in hindi 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत- बहुत स्वागत है, इस लेख सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में (Sumitranandan pant poem in hindi)

दोस्तों आज  आप इस लेख के माध्यम से प्रकृति के सुकुमार कहे जाने वाले कवि सुमित्रानंदन पंत की कविता भावार्थ सहित पड़ेंगे। तो आइये दोस्तों करते है, यह लेख शुरू सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में:-


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सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में

सुमित्रानंदन पंत की कविता पतझड़ Sumitranandan pant poem in hindi

कविता झरो, झरो, झरो 

झरो, झरो, झरो,

जंगम जग प्रांगण में,

जीवन संघर्षण में

नव युग परिवर्तन में

मन के पीले पत्तो!

झरो, झरो, झरो,

सन सन शिशिर समीरण

देता क्रांति निमंत्रण!

यह जीवन विस्मृति क्षण,

जीर्ण जगत के पत्तो!

टरो, टरो, टरो!

कँप कर, उड़ कर, गिर गर,

दब कर, पिस कर, चर मर,

मिट्टी में मिल निर्भर,

अमर बीज के पत्तो!

मरो! मरो! मरो!

तुम पतझर, तुम मधु--जय!

पीले दल, नव किसलय,

तुम्हीं सृजन, वर्धन, लय,

आवागमनी पत्तो!

सरो, सरो, सरो!

जाने से लगता भय?

जग में रहना सुखमय?

फिर आओगे निश्चय।

निज चिरत्व से पत्तो!

डरो, डरो, डरो!

जन्म मरण से होकर,

जन्म मरण को खोकर,

स्वप्नों में जग सोकर,

मधु पतझर के पत्तो!

तरो, तरो, तरो!

सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में

सुमित्रानंदन पंत की कविता प्रथम रश्मि Sumitranandan pant poem in hindi

प्रथम रश्मि कविता 

प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!

तूने कैसे पहचाना?

कहां, कहां हे बाल-विहंगिनि!

पाया तूने वह गाना?

सोयी थी तू स्वप्न नीड में,

पंखों के सुख में छिपकर,

ऊंघ रहे थे, घूम द्वार पर,

प्रहरी-से जुगनू नाना।

शशि-किरणों से उतर-उतरकर,

भू पर कामरूप नभ-चर,

चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,

सिखा रहे थे मुसकाना।

स्नेह-हीन तारों के दीपक,

श्वास-शून्य थे तरु के पात,

विचर रहे थे स्वप्न अवनि में

तम ने था मंडप ताना।

कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!

गा तू स्वागत का गाना,

किसने तुझको अंतर्यामिनि!

बतलाया उसका आना!

Sumitranandan pant poem in hindi व्याख्या

सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं, कि हे: खग तूने सूरज की पहली किरण आने को कैसे पहचाना खग के छोटे छोटे बालक तुमने सूरज की पहली किरण आते ही गाना गाना कहाँ से सीखा है। 

तुम तो अपने आपको अपने पंखों में लिपटाकर गहरी स्वप्न निद्रा में सोए हुए थे। जब दरवाजे पर जुगनू ऊंघ कर पहरा दे रहे थे। कवि कहता है,

कि चन्द्रमा की किरणों से पृथ्वी पर कामरुप रूपी नभचर नई-नई कलियों को चूमकर उन्हें गाना सिखा रहे है। तारों रूपी दीपक में भी तेल खत्म हो चुका है 

और पेड़ों के पत्ते भी ऐसे लग रहे हैं जैसे उनमें सांसे खत्म हो चुकी है और वे सपने की धरती पर विचरण कर रहे हैं, क्योंकि चारों ओर अंधेरे ने अपना जाल फैलाया हुआ है। धरती पर विचरण करने वाले

पक्षी अचानक ही चहक जाते हैं और किरणों के स्वागत का गाना गाने लगते हैं क्या वे अंतर्यामी है या उन्हें किसने बताया है, कि सूर्य की किरणें आने वाले है और वे चहक उठते है।

सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में

सुमित्रानंदन पंत की कविता मोह Sumitranandan pant poem in hindi

मोह कविता 

छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया,

तोड़ प्रकृति से भी माया,

बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?

भूल अभी से इस जग को!

तज कर तरल-तरंगों को,

इन्द्र-धनुष के रंगों को,

तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?

भूल अभी से इस जग को!

कोयल का वह कोमल-बोल,

मधुकर की वीणा अनमोल,

कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?

भूल अभी से इस जग को!

ऊषा-सस्मित किसलय-दल,

सुधा रश्मि से उतरा जल,

ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?

भूल अभी से इस जग को!

Sumitranandan pant poem in hindi व्याख्या=

सुमित्रानंदन पंत जी इस कविता में किशोरी नायिका से प्रकृति के सन्दर्भ में कहते है, में तुम्हारे सुन्दर रेशमी रेशे जैसे बालों में खुद को नहीं उलझा सकता,

कियोकि संसार में प्रकृति से जो भी छाया सुख शांति प्राप्त होती है, वह मानवीय सुंदरता से कहीं अधिक होती है और ऐसी प्रकृति से में कैसे रिश्ता तोड़ दूँ।

कवि कहता है कि हे! सुंदरी में क्यों अपने चंचल मन को प्रकृति की इंद्रधनुष जैसी सतरंगी सुंदरता से हटाकर इस संसार और प्रकति को भूल तुम्हारे रूप सौन्दर्य में लगाऊँ जो क्षणिक है। 

में अपने आप को प्राकृतिक सौन्दर्य में लगाऊंगा जो सदा रहने वाला है। कवि कहता है हे! सुंदरी कोयल की मधुर बोली और भौरा की अनमोल गुंजन जैसे संसार को छोड़कर अभी से तेरे मीठे स्वर में 

अपने आप को कैसे खो दूँ। कवि कहता है सुबह होते ही पुष्प अपने सुन्दर ओष्ठ खोलते है कलियाँ खिल जाती है और में ऐसे जग को कैसे भूलकर तुम्हारे ओंठो के रस के लिए अपने आप को इस जग से अलग कर दूँ।

सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में

सुमित्रानंदन पंत की कविता द्रुत झरो Sumitranandan pant poem in hindi

कविता द्रुत झरो 

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!

हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण!

हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत,

तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन !!

निष्प्राण विगत-युग! मृतविहंग!

जग-नीड़, शब्द औ’ श्वास-हीन,

च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों-से तुम

झर-झर अनन्त में हो विलीन !

कंकाल-जाल जग में फैले

फिर नवल रुधिर,-पल्लव-लाली!

प्राणों की मर्मर से मुखरित

जीव की मांसल हरियाली !

मंजरित विश्व में यौवन के

जग कर जग का पिक, मतवाली

निज अमर प्रणय-स्वर मदिरा से

भर दे फिर नव-युग की प्याली !

Sumitranandan pant poem in hindi व्याख्या=

सुमित्रानंदन पंत की यह कविता समाज में रूढ़िवादी परंपराओं के संदर्भ में है। कवि अपनी इस कविता के माध्यम से समाज को यह संदेश देना चाहता है,

कि समाज में पुरानी परंपराओं रूढ़िवादी परंपराओं को अब समाप्त हो जाना चाहिए कवि इस समाज को एक वृक्ष की भांति मानता है और कहता है, 

कि जो समाज रूपी वृक्ष में पुरानी परंपराओं रूढ़िवादी परंपराओं रूपी सूखे मृत पत्ते लगे हुए हैं तुम जल्दी जल्दी झड़ जाओ, क्योंकि यह पत्ते हिम से और ताप से पीले पड़ गए हैं, बसंत ऋतु के आगमन 

पर यह भयभीत होने लगते हैं, तुम पुराने और प्राचीन पत्ते हो। अब तुम निष्प्राण हो गए हो और बिना घर के शब्द और स्वाशहीन अब तुम्हे जल्दी से अनंत में विलीन हो जाना है। अब संसार रूपी वृक्ष में नीरसता आ गई है, 

इसलिए नए रुधिर अर्थात संसार में नये बिचारो से संसार रूपी वृक्ष जो मरने की स्थिति में है उसमें भी हरियाली नई पत्तियाँ उत्पन्न हो जाएंगी। 

कवि कहता है संसार रूपी वृक्ष में नए विचार रूपी नई पत्तियाँ आने से संसार रूपी कोयल मतवाली हो जाएगी और संसार रूपी वृक्ष फिर से मदहोश हो जाएगा तथा वह खुशहाली संसार रूपी वृक्ष में भर जाएगी।

सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में

सुमित्रानंदन पंत की कविता चींटी Sumitranandan pant poem in hindi

कविता चींटी 

चींटी को देखा?

वह सरल, विरल, काली रेखा,

तम के तागे सी जो हिल-डुल,

चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल,

यह है पिपीलिका पाँति! 

देखो ना, किस भाँति,

काम करती वह सतत, 

कन-कन कनके चुनती अविरत।

गाय चराती, धूप खिलाती,

बच्चों की निगरानी करती,

लड़ती, अरि से तनिक न डरती,

दल के दल सेना संवारती,

घर-आँगन, जनपथ बुहारती।

चींटी है प्राणी सामाजिक,

वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक।

देखा चींटी को?

उसके जी को?

भूरे बालों की सी कतरन,

छुपा नहीं उसका छोटापन,

वह समस्त पृथ्वी पर निर्भर,

विचरण करती, श्रम में तन्मय,

वह जीवन की तिनगी अक्षय।

वह भी क्या देही है, तिल-सी?

प्राणों की रिलमिल झिलमिल-सी।

दिनभर में वह मीलों चलती,

अथक कार्य से कभी न टलती

Sumitranandan pant poem in hindi व्याख्या=

सुमित्रानंदन पंत जी ने यहाँ पर चींटी की कविता के माध्यम से चींटी जैसे छोटे प्राणी की कर्मठता के बारे में बताया है। कवि सुमित्रानंदन पंत कहते हैं,

कि चींटी को देखो कैसे बिल्कुल काली पतली रेखा जैसी हिलडुल कर और छोटे छोटे पैरों से एक साथ मिलजुल कर चल रही है, वह चीटियों की पंक्ति होती है।

कवि चींटी को केंद्र बिंदु मानकर कहता है, कि देखो ना वह कैसे हमेशा कण-कण लगातार चुनती रहती है। चीटियाँ भी गाय चराती है, उन्हें धूप खिलाती है

और अपने बच्चों को भी सँभालती है इसके आलावा वे अपने शत्रुओं से नहीं डरती और मिलजुलकर बड़ा दल सेना बना लेती है, और अपने घर आँगन तथा सभी रास्तो को अच्छा करती है

जिनपर चीटियाँ चलती है, कियोकि चीटियाँ भी सामाजिक प्राणी है, वे मेहनत करने वाली है और अच्छी नागरिक भी। कवि कहता है,

कि देखा चींटी को और चींटी के जीवन को वह भूरे बालों की कतरन के समान अपना छोटा शरीर लिए हुए पूरे पृथ्वी पर मेहनत करती हुई विचरण करती हैं,

कियोकि वह ना क्षरण होने वाली चिंगारी की जैसी है उसका शरीर भी तिल सा है वह जीवन में चमक दमक लिए हुए दिनभर मीलों चलती रहती और कार्य से कभी ना थकती है। 

दोस्तों आपने इस लेख में सुमित्रानंदन पंत की कविता हिंदी में (Sumitranandan pant poem in hindi) में व्याख्या सहित पढ़ी। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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