राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास History of king Pushyamitra shung

राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास History of king Pushyamitra shung 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास (History of king Pushyamitra shung) में।

दोस्तों इस लेख में आप राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास जैसे की पुष्यमित्र शुंग कौन था? पुष्यमित्र शुंग का राज्याभिषेक, पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियाँ, पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी तथा महत्व जानेंगे। तो आइये दोस्तों करते है, शुरू यह लेख राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास:-


राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास


पुष्यमित्र शुंग कौन था who was pushyamitra shung 

पुष्यमित्र शुंग हिन्दु धर्म का महान तथा वीर राजा था, जिसने भारत भूमि को बाहरी शक्तियों से बचाने के लिए अंतिम मुगल सम्राट बृहदृथ की हत्या करके स्वयं राज्य को बाहरी आक्रमण कर्ताओं से बचाया।

पुष्यमित्र शुंग अंतिम सम्राट बृहदृथ का सेनापति था, जिसकी 184 ईसवी में पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर दी और मगध का शासक बन गया।

इतिहासकारों के द्वारा बताया जाता है, कि बृहदृथ एक दुर्बल शासक था वह अपनी प्रजा की रक्षा ठीक प्रकार से नहीं कर पाता था, इसलिए उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अपनी सेना का समर्थन प्राप्त करके सेना

के सामने ही बृहदृथ को मौत के घाट उतार दिया और सत्ता को हथिया लिया। पुष्यमित्र शुंग किस जाति के थे, इस प्रश्न पर विवाद हैं, कुछ इतिहासकार पुष्यमित्र शुंग को पारसी बताते है, तो कुछ मौर्य जबकि कुछ अन्य ब्राह्मण भी बताते हैं।


पुष्यमित्र शुंग का राज्याभिषेक Coronation of Pushyamitra Shunga

मौर्य वंश के शासकों ने 321 से 185 ई. तक शासन किया था और अंतिम मौर्य शासक बृहदृथ की हत्या करके पुष्यमित्र शुंग शासक बना था, इसीलिए 185-184 ईसवी के मध्य पुष्यमित्र शुंग का राज्याभिषेक हुआ। कुछ इतिहासकार पुष्यमित्र शुंग के

राज्याभिषेक की तिथि 187 ईस्वी पूर्व मानते हैं। राजगद्दी पर आसीन होने के बाद पुष्यमित्र शुंग ने लगभग 36 वर्ष तक राज्य किया, जबकि उसकी मृत्यु 148 पूर्व में हो गई, किंतु कई पुराणों में और ब्राह्मण ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल 60 वर्ष का भी बताया गया है।


पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियाँ Achievements of Pushyamitra Shung

पुष्यमित्र शुंग जैसे ही शासन करने लगा तो उसने अपने शासन पर संयम रखने के लिए रक्त की नीति को अपनाया अर्थात उसका संपूर्ण शासन और उपलब्धियाँ रक्तिम रहीं उसका शासन बड़ा ही मजबूत हुआ करता था उसकी सेना उसके इशारों पर नाचती थी

और सभी प्रकार के कार्य बड़ी ही सावधानी पूर्वक और पूरी तैयारी से किए जाते थे। पुष्यमित्र शुंग ने अपने शासनकाल में कई उपलब्धियाँ प्राप्त की जिसमें से कुछ महान उपलब्धियाँ निम्नप्रकार हैं:-


साम्राज्य का संगठन Organization of empire

मौर्य वंश के सम्राट बृहदृथ के समय तक मौर्य साम्राज्य की स्थिति बहुत ही दुर्बल हो चुकी थी, मगध का साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था, इसीलिए पुष्यमित्र शुंग ने बृहदृथ की हत्या की और तत्कालीन स्थिति को सुगठित करने की कोशिश की।

उस समय अनेक राजा महाराजा मगध साम्राज्य पर आक्रमण करने की सोच रहे थे, जबकि यूनानी आक्रमणों का भी उस समय बहुत खतरा था।

पुष्यमित्र शुंग ने सबसे पहले अपने साम्राज्य की आंतरिक स्थिति को मजबूत बनाया इसके बाद प्राची, कौशल वत्स और अवंती आदि राज्यों मगध के अधीन किया, उनको अपने साम्राज्य में मिलाकर मगध को मजबूत बना लिया तथा

अपने राज्य की नई राजधानी विदिशा को बना दिया और विदिशा में अपने पुत्र अग्निमित्र को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए कहा और मगध को एक शक्तिशाली केंद्र के रूप में बनाने में वह सफल रहा।


विदर्भ पर विजय Victory over vidarbha

पुष्यमित्र शुंग ने अपने साम्राज्य का संगठन किया इसके बाद उसने साम्राज्य के विस्तार के लिए विदर्भ पर आक्रमण कर दिया उस समय विदर्भ का शासक यज्ञसेन था। पुष्यमित्र शुंग ने यज्ञसेन के पिता को बृहदृथ की हत्या करने के पश्चात बंदी बना लिया था,

जबकि यज्ञसेन के एक संबंधी माधवसेन को अपने पक्ष में मिला लिया था, किंतु कुछ समय पश्चात यज्ञसेन ने माधवसेन को बंदी बना लिया, इसलिए दोनों के बीच यह शर्त रखी गई, कि पुष्यमित्र शुंग यज्ञसेन को पिता को छोड़ दें तो यज्ञसेन माधवसेन को छोड़ देगा,

इसीलिए युद्ध प्रारंभ हो गया और पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र ने इसमें विजय प्राप्त की तथा विदर्भ के दो भाग कर दिए, एक का शासक माधव सेन को बनाया गया और दूसरे का शासक यज्ञसेन को, जबकि यज्ञसेन पुष्यमित्र शुंग के अधीन राज्य करेगा।


खारवेल से युद्ध Battle with Kharavela

इतिहासकार बताते हैं, कि खारवेल और पुष्यमित्र के बीच में दो बार युद्ध हुआ जिसमें खारवेल को विजय प्राप्त हुई थी। खारवेल ने पहला आक्रमण 165 ईसवी में किया था और दूसरा आक्रमण 161 में किया था,

किंतु कुछ इतिहासकार मानते हैं, कि खारवेल और पुष्यमित्र समकालीन नहीं थे, क्योंकि पुष्यमित्र की मृत्यु 148 ईसवी पूर्व में ही हो गई थी, इसलिए खारवेल ने जिस राजा को पराजित किया था वह पुष्यमित्र शुंग ना होकर कोई और राजा रहा होगा।


यवनो से युद्ध Battle with yavan

पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में यवनो ने भारत पर आक्रमण किया था, जिनका पुष्यमित्र शुंग ने सामना भी किया और उनको को परास्त भी कर दिया

तथा भारत में घुसने भी नहीं दिया। यवनो द्वारा भारत में किए गए आक्रमण की चर्चा मालविकाग्निमित्रम् में देखने को मिल जाती है।


अश्वमेध यज्ञ Ashwamedha yagya

पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण धर्मावलंबी था, उसने अपने शासनकाल में अश्वमेध यज्ञ भी करवाया था। मालविकाग्निमित्रम् पतंजलि दोनों ने ही इसके बारे में बताया है, किंतु अयोध्या के अभिलेख से प्राप्त सूचना से यह पता चलता है, कि पुष्यमित्र ने एक नहीं दो अश्वमेध यज्ञ करवाये थे, जिसमें

पहला यज्ञ शासन काल प्रारंभ होने पर विदर्भ विजय में और दूसरा उसने अपने शासनकाल के अंतिम दिनों में करवाया था। उसके छोड़े गए अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को सिंधु नदी के पास यवनो ने पकड़ लिया तो युद्ध हुआ और पुष्यमित्र शुंग की विजय हुई।


पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी Successor of Pushyamitra Shunga

पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ईसवी में हो गई है, इसके बाद उसके 8 पुत्र थे और उसने अपने साम्राज्य को 8 भागों में बांट दिया था, किंतु ऐसा उल्लेख किसी भी प्रकार के स्रोत में नहीं मिलता है।

पुष्यमित्र की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शासक बना जिसने लगभग 8 वर्ष तक शासन किया था। अग्निमित्र कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्रम् का नायक भी था। अग्निमित्र के शासन की किसी घटना का उल्लेख किसी भी स्रोत में नहीं मिलती है,

अग्निमित्र के बाद बसुज्येष्ठ फिर अग्निमित्र का पुत्र वसुमित्र, वसुमित्र के बाद आंध्रक आंध्रक के बाद पुलिंडक, फिर घोष, ब्रजमित्र, भाग, तथा अंतिम शुंग सम्राट देवभूति था, जिसको

उसके मंत्री वासुदेव कण्ड ने मार कर हत्या कर दी और शासन को हथिया लिया इस प्रकार से शुंग वंश ने 112 वर्ष तक शासन किया और शुंग वंश की समाप्ति 72 ईसवी पूर्व में पूरी तरह हो गई।


पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु Death of Pushyamitra Shunga

पुष्यमित्र शुंग एक अशहिष्णु शासक था कुछ इतिहासकार कहते है, कि पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध भिक्षुओं का नरसंहार किया था यहाँ तक कि उसने यह घोषणा कर दी कि जो भी एक बौद्ध भिक्षु का सर काट कर लाएगा उसको 100 स्वर्ण मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगे।

यही करण पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु का बना और बौद्ध भिक्षुओं के सहयोग से उसे 148 इस्वी में मौत के घाट उतार दिया गया। किन्तु कुछ इतिहासकार इस तर्क से सम्मत नहीं है।


शुंग वंश का महत्व Importence of shung dynesty 

शुंग वंश का शासनकाल राजनीतिक, सांस्कृतिक और कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रारम्भिक शुंग राजा शक्तिशाली राजा हुआ करते थे, जिन्होंने मगध को बाहरी आक्रमणों से बचाने का प्रयास किया

और उसे अक्षुन्य बनाए रखा। शुंग काल वेदिक धर्म के उत्थान तथा ब्राह्मण धर्म की संस्कृति के पुनरुद्धार का काल कहलाता है। शुंगकाल में ब्राह्मण धर्म ने अपना खोया हुआ सम्मान फिर से प्राप्त किया था,

शुंगकाल में ही यज्ञ हवन पूजा-पाठ कर्मकांड का बोलबाला फिर से चालू हो गया था, वर्ण व्यवस्था की मर्यादा भी ठीक प्रकार से स्थापित हो चुकी थी।

ब्राह्मण धर्म की उन्नति के साथ शुंग काल में साहित्य और कला के क्षेत्र में भी आश्चर्यजनक उन्नति होती गई, पतंजलि और महाभारत की मनुस्मृति की रचना भी शुंग काल में ही हुई है।

विदिशा का गरुड़ध्वज, हाजा का चैत्य और बिहार अजंता का नवा चैत्य मंदिर काले के चैत्य मथुरा की यक्ष, यक्षिणियों की मूर्तियाँ शुंग काल के ही उदाहरण हैं,

जबकि भरहुत, बोधगया, सांची के स्तूपों को नया रूप शुंग काल में दिया गया था। इसके आलावा शुंगकाल में सांस्कृतिक, राजनितिक कला के साथ व्यापार आदि में भी उन्नति हुई।

दोस्तों आपने यहाँ पर राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास (History of king Pushyamitra shung) के साथ अन्य तथ्य पढ़े। आशा करता हुँ, आपको यह लेख पसंद आया होगा।

इसे भी पढ़े:-:

  1. हंटर आयोग 1882 का इतिहास History of Hunter commission 1882


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