कनिष्क का इतिहास तथा परिचय History and Introduction of Kanishka
कनिष्क का इतिहास तथा परिचय History and Introduction of Kanishka
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख कनिष्क का इतिहास तथा परिचय (History and Introduction of Kanishka) में।
दोस्तों यहाँ पर आप कनिष्क का जीवन परिचय, कनिष्क की उपलब्धियाँ, कनिष्क की विजयें आदि के बारे में पड़ेंगे। तो आइये शुरू करते है, यह लेख कनिष्क का इतिहास तथा परिचय:-
इसे भी पढ़े:- हंटर आयोग 1882 का इतिहास History of Hunter Commission 1882
कनिष्क का जीवन परिचय Biography of Kanishk
कनिष्क कुषाण वंश का एक वीर शासक था, जिसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी। कनिष्क कुषाण वंश के छिन्न-भिन्न साम्राज्य को फिर से समृद्ध बनाने का प्रयास किया और उसमें सफल रहा।
कुषाण वंश का संस्थापक कुजुल कैडफिसेस था जो युची जाति के पांच जातियों में से कोई चाउआंग जाति से सम्बन्ध रखता था। कुजुल कैडफिसेस ने अन्य चार जातियों हिउमी, ही-तुम, चाउआंग-मी ताउ-मी पर विजय प्राप्त करके कुषाण वंश की स्थापना की,
तथा 80 वर्ष तक शासन किया इसके बाद उसका पुत्र विम कैडफिसेस शासक बना और उसने कई वर्षों तक शासन किया, किन्तु विम कैडफिसेस मृत्यु के उपरांत कुषाण वंश में कोई भी शक्तिशाली शासक नहीं रहा, इसलिए कुषाण वंश की सत्ता क्षीण होने लगी
तथा आसपास के राजाओं ने कुषाण वंश के कई क्षेत्रों पर अधिकार भी कर लिया। इसके लगभग दो दशकों के बाद कनिष्क प्रथम कुषाणों के लिए देवता बनकर उभरा और उसने फिर से कुषाण वंश को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित कर दिया,
किन्तु कनिष्क कौन था? इसके बारे में इतिहासकारों में मतभेद है, इतिहासकारों का मानना है, कि कनिष्क कुषाणों की सबसे छोटी शाखा यु-ची से संबंध रखता था, किंतु कुछ इतिहासकारों का मानना है, कि कनिष्क और विम कैडफिसेस एक ही वंश के थे।
कनिष्क की राज्यारोहण की तिथि The date of accession of Kanishka
कनिष्क के शासन की तिथि के बारे में विभिन्न इतिहासकारों के बीच में मतभेद है, क्योंकि कुषाण वंश का इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत उनके द्वारा संचालित मुद्राएँ हैं। इतिहासकार मजूमदार मानते हैं,
कि 248 ईसवी में कनिष्क राज सिंहासन पर बैठा था, जबकि भंडारकर मानते हैं, कि कनिष्क की राज्यारोहण की तिथि 278 ईसवी है, जबकि डूब्रील का कहना है, कि कनिष्क का राज्य शुरू होने के ठीक 100 वर्ष के पश्चात कुषाण वंश के अंतिम शासक वासुदेव का अंत हुआ था। इस प्रकार यदि कनिष्क 248 अथवा 278 ईसवी में शासक बना था।
उनका शासन 348 और 378 ईसवी तक चलना चाहिए, किंतु इस समय गुप्त शासकों का उन प्रदेशों का अधिकार हो चुका था। चीन के स्रोतों से ज्ञात होता है, कि कनिष्क 170 ईसवी से पहले था, जबकि मार्शल स्मिथ कनिष्क के राज्यरोहण की तिथि 125 अथवा 144 ईसवी मानते हैं।
कुछ विद्वान जैसे कि फरगूसन, राखलदास बनर्जी, रेप्सन आदि विद्वान कहते हैं, कि कैडफिसेस द्वितीय का शासन प्रथम शताब्दी में खत्म हो गया था और कनिष्क इसके पश्चात गद्दी पर बैठा था, इसीलिए 78 ईसवी के लगभग ही इनका राज्यारोहण हुआ होगा।
अतः कनिष्क के राज्याभिषेक की तिथि 78 ईसवी मानना ही तर्कसंगत होता है और कनिष्क के द्वारा 78 ईसवी के शक संवत का संचालन भी सही प्रतीत लगता है।
कनिष्क के युद्ध और विजय Wars and Victories of Kanishka
कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कनिष्क एक कुशल योद्धा सेनापति और वीर सैनिक था। गद्दी पर बैठते ही उसने अपने पूर्वजों का काफी बड़ा साम्राज्य फिर से संगठित किया,
उसने अपनी युद्ध विजयों के कारण अपने साम्राज्य को और भी अधिक शक्तिशाली और समृद्ध विशाल बना दिया था, इसीलिए कनिष्क के कुछ युद्ध और विजय यहाँ पर बताए गए हैं:-
- पार्थिया से युद्ध :- पार्थिया ने कनिष्क पर आक्रमण दो प्रकार के कारणों के फलस्वरूप किया था। पहला कारण था, कि कनिष्क का अधिकार बैक्ट्रिया पर था और बैक्ट्रिया व्यापारिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान था, जबकि दूसरा कारण था एरियाना प्रदेश पर पहले पार्थिया का अधिकार था, किंतु बाद में कुषाणों ने उस पर अधिकार कर लिया था, इसलिए पार्थिया ने कनिष्क पर इन दोनों प्रदेशों पर अधिकार करने के लिए आक्रमण किया, किंतु कनिष्क ने पार्थिया को बुरी तरह पराजित कर दिया।
- चीन से युद्ध :- कनिष्क के समय चीन पर हान वंश का शासन था, जो एक अत्यंत ही शक्तिशाली वंश हुआ करता था। इस वंश का एक शक्तिशाली सेनापति भी था, जिसका नाम था पानचाओ जिसने खेतान काशगर कुचा आदि स्थानों पर अधिकार कर लिया था और इन स्थानों की सीमाएँ कुषाण साम्राज्य की सीमाओं को स्पर्श करती थी, इसीलिए अपनी सीमा तथा साम्राज्य की सुरक्षा के लिए कनिष्क ने अपना राजदूत चीनी सम्राट हो-ति के दरबार में भेजकर चीनी राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की इस प्रकार के प्रस्ताव से चीनी सम्राट ने अपना अपमान समझा और कनिष्क के राजदूत को बंदी बना लिया जब यह खबर कनिष्क को पता चली तो उसने 70000 घुड़सवारों की सेना लेकर चीन पर आक्रमण करने के लिए चल दिया, किंतु खराब मौसम के कारण खेतान तक ही कनिष्क की सेना का एक बड़ा भाग नष्ट हो गया और कनिष्क की सेना को चीनी सेनापति ने आसानी से हरा दिया तथा चीनी सेनापति ने कनिष्क को विवश करके प्रतिवर्ष कर देने के लिए बाध्य कर दिया। किंतु हवेनसंग के वर्णन में मिलता है, कि बाद में कनिष्क ने अपना प्रतिशोध ले लिया था। किवदन्ति अभिलेख से यह पता चलता है, कि कनिष्क ने कहा था, कि मैंने तीनों दिशाओं को अपने अधीन कर लिया था केवल उत्तर दिशा को छोड़कर।
कनिष्क की उपलब्धियाँ Achievements of Kanishk
कुषाण वंश का शक्तिशाली शासक कनिष्क अपनी युद्ध विजयों के कारण इतना प्रसिद्ध तो नहीं था, किंतु अपनी महान उपलब्धियों के कारण बहुत अधिक प्रिसिद्धि प्राप्त कर चुका था उसने देवपुत्र शाहने शाही की उपाधि धारण की थी। यहाँ पर कनिष्क की कुछ महान उपलब्धियाँ बताई गई हैं:-
- बौद्ध धर्म की उन्नति :- कनिष्क को बौद्ध धर्म के संरक्षण और प्रचार प्रसार में दूसरे अशोक की संज्ञा प्राप्त है। कनिष्क की मुद्राओं से यह पता चलता है, कि वह एक रक्त पिपासु शासक था, किंतु जब उसने बौद्ध धर्म ग्रहण किया तब उसको पश्चाताप हुआ और वह दयालु बन गया। कनिष्क बौद्ध विद्वान अश्वघोष के संपर्क में आया था और उन्हीं के प्रभाव से उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया। कनिष्क ने बौद्ध विहार, मठ, चैत्य, स्तूप आदि का निर्माण करवाया तथा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में भी प्रयास किया कनिष्क ने बौद्ध धर्म की उन्नति के लिए चतुर्थ बौद्ध संगीति कुंडल वन कश्मीर में आयोजित की थी।
- चतुर्थ बौद्ध संगीति:- कनिष्क के जीवन की महान उपलब्धि चतुर्थ बौद्ध संगीति है। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात कनिष्क ने बौद्ध धर्म के नियमों को समझने का प्रयास किया और कई बौद्ध धर्म के विवादास्पद सिद्धांतों का निर्णय करने के लिए कनिष्क ने अपने शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया, जिसका अध्यक्ष वसुमित्र था और इस सभा में 500 से अधिक बौद्ध विद्वान सम्मिलित हुए थे। यह बौद्ध संगीति कश्मीर कुंडल वन में आयोजित की गई थी और लगभग 6 माह तक चलती रही, जिसमें बौद्ध धर्म साहित्य की सूक्ष्मता से जांच की गई और बौद्ध धर्म में प्रचलित विवादों को समाप्त किया गया।
- महायान शाखा:- चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन होने के फलस्वरूप बौद्ध धर्म की एक महायान शाखा का उदय हुआ, जिसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में नागार्जुन के प्रयासों से महत्वपूर्ण परिवर्तन हो गए और मूर्ति पूजा स्वर्ग धार्मिक क्रियाओं आदि को स्वीकार किया गया और एक नई शाखा का जन्म हुआ, जिसे महायान कहा गया। जबकि मूल बौद्ध धर्म को हीनयान के नाम से जाना गया, जिसके अंतर्गत महात्मा बुद्ध को महापुरुष समझा जाता था, जबकि महायान के अंतर्गत उन्हें ईश्वर और अवतार माना जाता था।
- निर्माण कार्य तथा साहित्य:- कनिष्क एक महान निर्माणकर्ता भी था उसने अपने शासनकाल में कश्मीर में कनिष्कपुर नामक नगर की स्थापना की, जबकि पुरुषपुर, तक्षशिला, मथुरा आदि का सौंदर्यकरण भी करवाया। कनिष्क ने विभिन्न स्थानों पर बौद्ध विहार, स्तूपो का निर्माण भी करवाया है, जबकि पुरुषपुर में 400 फुट ऊंची और 13 मंजिला की एक मीनार भी निर्मित करवाई थी। कनिष्क कला और साहित्य का आश्रयदाता भी था उसके राज्य में कई विद्वानों को आश्रय दिया गया था कनिष्क की राज्यसभा में बुधचरित, अश्वघोष, तथा चरक जैसे विद्वान रहा करते थे।
- व्यापार तथा कला:- कनिष्क के साम्राज्य में बैक्ट्रिया जैसा प्रदेश शामिल था, जो व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा करता था और व्यापारिक मार्गों के लिए भी जाना जाता था। इसीलिए रोम के साथ मैत्री संबंध भी स्थापित हो गए और व्यापार भी विकसित हो गया भारत से वस्त्र आभूषण और प्रसाधन सामग्री निर्यात होती थी, जबकि वहाँ से सोना अन्य कीमती सामान भारत आने लगा था। कनिष्क के शासन काल में कला पर भी बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा एक नई गांधार शैली का जन्म हुआ। कनिष्क के शासन काल में महायान का उदय होने के बाद बुद्ध की मूर्तियाँ और उनकी पूजा भी होने लगी। गांधार कला शैली का उदय होने से इसी समय बौद्ध भगवान की मूर्तियाँ निर्मित की जाने लगी।
कनिष्क की मृत्यु तथा उत्तराधिकारी Kanishka's death and successor
कनिष्क एक बहुत ही वीर और साहसी सैनिक था, उसने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए युद्ध की नीति अपनाई थी इसीलिए वह अपने संपूर्ण जीवन में युद्ध ही करता रहा। कनिष्क की इस नीति से उसकी सेना और सेनापति भी परेशान रहने लगे थे,
इसीलिए उसके सेनापतियों ने ही युद्ध की नीति से तंग आकर कनिष्क की हत्या कर दी थी, जिसकी समाधि पेशावर पाकिस्तान में है।
कनिष्क की मृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारी निर्बल थे, इसीलिए वसिष्क को शासक बनाया गया इसके बाद उसका उत्तराधिकारी हुविष्क शासक बना कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था।
दोस्तों यहाँ पर आपने कनिष्क का इतिहास तथा परिचय (History and Introduction of Kanishka) पढ़ा। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
इसे भी पढ़े:-
- चन्द्रगुप्त प्रथम का इतिहास History of Chandragupta।
- राजा पुष्यमित्र शुंग का इतिहास History of king Pushyamitra shunga
Comments
Post a Comment