मेरी पहली बस की यात्रा पर निबंध Meri Pahli Bas Yatra Par Nibandh
मेरी पहली बस की यात्रा पर निबंध Meri Pahli Bas Yatra Par Nibandh
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख मेरी पहली बस की यात्रा पर निबंध (Meri Pahli Bas Yatra Par Nibandh) में।
दोस्तों इस लेख में मैंने अपनी वास्तविक पहली बस यात्रा पर निबंध लिखा है। यह निबंध कक्षा 1 से 12 वीं तथा उच्च कक्षाओं में पूँछा जाता है,
इसलिए यहाँ से आप मेरी पहली बस की यात्रा पर निबंध लिखने का आईडिया भी लें सकते है। तो आइये शुरू करते है, यह लेख मेरी पहली बस की यात्रा पर निबंध:-
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प्रस्तावना Preface
दोस्तों बस के बारे में तो सभी जानते हैं और बस सभी ने देखी भी होगी, क्योंकि यह हमारे परिवहन का यातायात का एक अभिन्न अंग बन गया है।
बस में एक साथ डेढ़ सौ से दो सौ तक व्यक्ति सफर कर सकते हैं। बस कई सीटों में होती है जैसे कि कुछ बसें हल्की होती हैं जो 28 सीटर होती हैं तो कुछ 30 सीटर की बसें होती है, जबकि कुछ बड़ी बसें होती हैं
जो अपने 49 सीटर 52 सीटर से भी अधिक सीटों की होती हैं, जिनमें में एक बार में डेढ़ सौ से 200 तक यात्री सफर करते हैं। कुछ बसें ऐसी भी होती हैं, जिन्हें लग्जरी बस कहा जाता है, जबकि कुछ ऐसी बसें होती हैं, जिनमें सोने की भी व्यवस्था होती है।
ऐसी बसों का उपयोग लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए किया जाता है। तो हम यहाँ पर एक ऐसी ही बस की यात्रा का वर्णन कर रहें है, जिसका मैंने स्वयं अनुभव लिया है।
मेरी पहली बस की यात्रा का वर्णन Meri Pahli Bas Yatra Par Nibandh
मेरी पहली बस की यात्रा का अनुभव मुझे अच्छे से याद है, क्योंकि यह मेरे जीवन की वह पहली घटना थी जिसमें मैं बहुत ही बुरी तरह से आहत हुआ और इंजॉय भी किया। यह बात उस समय की थी
जब मैं मात्र 8 साल का था। मेरे घर में मेरे मम्मी पापा दो भाई और एक बहन भी है, जिसमें एक बड़ा भाई एक छोटा भाई और एक बड़ी बहन है। हम सभी बस के द्वारा मेरे गांव रानीपुर से ग्वालियर एक शादी को अटेंड करने आ रहे थे। उस समय गर्मियों का समय था।
गर्मी अपने चरम सीमा पर थी और बारिश भी नहीं हो रही थी, जैसे तैसे हम अपने गांव रानीपुर से मऊरानीपुर के बस स्टैंड पर पहुंचे जहाँ हमने ग्वालियर जाने के लिए बस का पता किया जब हमें पता चला कि ग्वालियर कोई भी डायरेक्ट बस नहीं जाती है,
तो हमने झांसी जाने वाली बस में सफर करना उचित समझा। मेरे पिताजी ने चार टिकट लिए जिनमें दो टिकट मेरे माता-पिता के और दो टिकट मेरे बड़े भाई बहनों के थे, जो करीब 13 साल और 15 साल के होंगे।
बस अपने बस स्टैंड से निर्धारित समय 8:30 बजे के आसपास रवाना हुई जो मऊ बस स्टैंड से बंगरा होते हुए सकरार निवाडी, बरुआसागर ओरछा होते हुए झांसी पहुँचनी थी। मैं खिड़की वाली सीट पर बैठा था
और मैंने खिड़की खोल रखी थी, जिससे मुझे हवा मिलती रहे और बाहर का नजारा देखकर मनोरंजन भी होता रहे। बंगरा के आगे का जो एरिया था, वह थोड़ा पहाड़ी था। दूर-दूर तक पहाड़ दिखाई दे रहे थे,
गर्मियों का सीजन था, तो गर्मी भी बहुत थी, खाली पड़े खेत वीरान से दिखाई पड़ रहे थे जब भी छोटे - छोटे बस स्टैंड पर बस रुकती थी, तो पानी बेचने वालों की आवाज कान में सुनाई देती थी।
हम अपना मनोरंजन करते होगे बस की यात्रा का आनंद लेते हुए चले जा रहे थे, जब बस हमारी बस बंगरा से आगे निकल चुकी थी तब मेरे स्वास्थ्य में थोड़ी सी तकलीफ होनी शुरू हो गई और मेरा जी मचलने लगा और थोड़ी देर बाद मुझे भयानक उल्टियाँ होनी
शुरू हो गई उल्टी करते करते मेरी हालत बड़ी ही खस्ता हो गई थी। मैं अपनी सुध बुध खो कर अपनी सीट पर ही टिक गया था।उस समय तो ऐसा लग रहा था, जैसे कि मेरी जान ही निकल जाएगी। मम्मी ने मेरा मुँह धुलवाया और थोड़ा पानी पीने के लिए दिया।
कुछ देर बाद मुझे आराम मिल गया और में अपने होशो हवास में आ गया। अब हमारी बस सकरार होते हुए निवाड़ी बस स्टैंड पर पहुंची जहाँ मैने कोल्ड्रिंक्स पी। रास्ते में छोटे-छोटे कई गांव पड़ते थे,
जहाँ पर लोगों के खपरैल वाले घर पक्के घर उनकी डिजाइन, लोगों के रहन सहन स्कूल दुकाने मंदिर, तो कहीं-कहीं पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग भी दिखाई देती थी। कुछ लोग पानी भरते हुए दिखाई देते थे तो कहीं पर कोई बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे थे।
रास्ते का आनंद लेते हुए हमारी बस आगे बढ़ी जा रही थी और हम कुछ देर मे बरुआसागर पहुंच गए। यहाँ का वातावरण बहुत ही शीतल वातावरण था। बरुआसागर में बहुत सारी नर्सरी थी, जहाँ पर रंग बिरंगे फूल तथा फलों के पौधे बेचे जाते थे, गमलों में फूल लगे हुए थे और कई फलों के पेड़ पौधे भी वहाँ पर उपलब्ध थे।
बरुआसागर के बाद हमारी बस और आगे निकली जो ओरछा बस स्टैंड था। वहीं पर हमारी बस वेतवा नदी के पुल से गुजरी इतनी विशाल नदी देख में तो अचंभित रह गया दूर - दूर तक पानी ही पानी दिखाई दे रहा था। कहीं-कहीं नाव भी दिखाई दे रही थी,
जिनमें बैठे लोग शायद मछली पकड़ रहे हो, शायद मछुआरे ही रहे होंगे। बस में बैठे बहुत से लोग नदी में सिक्के भी फेंक रहे थे और नदी को प्रणाम भी कर रहे थे, क्योंकि भारतीय संस्कृति में नदियों को माताओं के तुल्य माना जाता है।
ओरछा वीर बुंदेला शासक का राज्य है, जहां पर रामलला मंदिर भी है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से भी लोग आते हैं। यहाँ की एक विशेष कथा भी प्रचलित है, जो बहुत ही पौराणिक पर रोचक कथा है। ओरछा के बाद 8 किलोमीटर झांसी रह जाता है।
झांसी बस स्टैंड पर पहुंचकर हम सबसे पहले गन्ने का जूस पीते हैं और प्रतीक्षालय में आराम करते है। झाँसी नगरी बड़ी ही सुन्दर और क्रन्तिकारी नगरी है, यहाँ की रानी लक्ष्मीबाई ने अकेले ही अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिए थे। झांसी से ग्वालियर के बीच की यात्रा भी हमने बस के द्वारा तय करना ही अच्छा समझा।
झांसी बस स्टैंड से सीधी ग्वालियर के लिए कई बसें मिलती है, इसीलिए हमने वहां से ग्वालियर के लिए चार टिकट लिए और ग्वालियर जाने वाली बस पर चढ़ गए, जो लगभग 12:00 बजे चलनी प्रारंभ हुई जिसमें सबसे खास बस स्टैंड दतिया और डबरा बस स्टैंड है।
बीच-बीच में कई पौराणिक स्थान भी मिलते हैं, जिनमें दतिया का पीतांबरा पीठ, डबरा के पास निकलने वाली सिंध नदी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। झांसी से हमारी बस दतिया डबरा होती हुई ग्वालियर लगभग 3:30 बजे तक पहुँची और इन सारे 3 :30 घंटों में हमने बहुत ही मनोरंजन किया।
हमें गांव के लोगों को देखने उनके रहन-सहन उनके कार्य, कामकाज, संस्कृति की झलक देखने को मिली वही प्राकृतिक पर्यावरण की अनुपम सौंदर्य ताजगी का हमने बस यात्रा के दौरान आनंद उठाया लगभग 4:00 बजे के आसपास हम ग्वालियर नगरी में थे,
जो महाराजा सिंधिया की नगरी के नाम से जानी जाती है। यहाँ पर देखने के लिए विभिन्न प्रकार के पर्यटक और पौराणिक स्थल हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख ग्वालियर का किला महाराजा सिंधिया का महल प्रमुख स्थान रखते है,
हम अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच कर बहुत ही आनंदित हो गए औरहमने शादी में खूब एंजॉय किया उसके बाद दूसरे दिन हमने ग्वालियर का किला मोती महल और अन्य धार्मिक और पौराणिक स्थलों के दर्शन भी किये हमारी पहली बस यात्रा बहुत ही आनंदित
और मनोरंजक भी हुई, किंतु मुझे बस में सफर के दौरान उल्टियाँ हुई थी, जिससे मुझे अन्य लोगों के सामने गिल्टी महसूस हुई, लेकिन फिर भी मेरी बस यात्रा का पहला सफर आनंदित और मनोरंजक रहा।
निष्कर्ष Conclusion
दोस्तों बस यात्रा में वास्तव में बहुत आनंद आता है, लेकिन जब सीट विंडो वाली मिली हो परन्तु बहुत से गंदे लोग भी बस में सफर करते है जो बीड़ी पीते है खुटखा खाते है और यात्रियों को परेशानियाँ उत्पन्न करते है ऐसे लोगों से में बहुत नफरत करता हूँ। फिर भी मेरी पहली यात्रा का अनुभव अलग ही था।
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