महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस Maharaja Surajmal Sacrifice Day

महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस Maharaja Surajmal Sacrifice Day

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस (Maharaja Surajmal Sacrifice Day) में।

दोस्तों इस लेख में आप महाराजा सूरजमल कौन है? महाराजा सूरजमल कहां के शासक थे? उतरी भारत मे जाट शक्ति का उदय के साथ महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस आदि के बारे में पड़ेंगे। तो आइये शुरू करते है, यह लेख महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस:-

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महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस

महाराजा सूरजमल कहाँ के शासक थे Maharaja Surajmal was the ruler of

महाराजा सूरजमल जी भारत के सबसे बड़े राजा हुए हैं इनका राज्य भरतपुर क्षेत्र था जो आज का राजस्थान हरियाणा दिल्ली उत्तरप्रदेश के कुछ भाग है था महाराजा सूरजमल जी का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ था

व 25 दिसम्बर को उनकी पुण्यतिथि उनके बलिदान दिवस के रूप में मनाई जाती हैं महाराजा सूरजमल के पिता का नाम बदन सिंह था बदन सिंह की मृत्यु के बाद महाराजा सूरजमल जी 1755-56 में शासक बने थे।

महाराजा सूरजमल में राजनैतिक कुशलता,उदारता,कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उन्हें जाट जाति का प्लेटों भी कहा जाता हैं। आगरा,मेरठ,भरतपुर, अलीगढ़ यह क्षेत्र महाराज सूरजमल जी के राज्य में आते थे महाराजा सूरजमल जी अन्य राज्यों के तुलना में सबसे शक्तिशाली शासक थे।

महाराजा सूरजमल ने अफगान सरदार असन्द खान,मीर बख्शी,सलावत खां आदि का दमन किया था और हिंदुस्तान को एक मजहबी राष्ट्र होने से बचाया।इसके अलावा सूरजमल जी ने मराठों को भी अपनी शक्ति से आगे बढ़ने से रोका था।

महाराजा सूरजमल जी ने ही भरतपुर का लोहागढ़ किला बनाया था। इस किले का सबसे बड़ा इतिहास रहा हैं, कि इस किले पर कोई आक्रमण नहीं कर पाया था। महाराजा सूरजमल जी जयपुर के राजा जयसिंह जी के दोस्त भी थे।

उतरी भारत मे जाट शक्ति का उदय Rise of Jat Power in North India

महाराजा सूरजमल का नाम उत्तर भारत मे बढ़ता ही जा रहा था। जयसिंह की मौत के बाद उनके बेटे ईश्वर सिंह और माधोसिंह में गद्दी को लेकर युद्ध हो गया था।सूरजमल बड़े बेटे ईश्वर सिंह के पक्ष में थे,जबकि उदयपुर के महाराणा जगत सिंह माधोसिंह के पक्ष में थे।

इसके बाद दोनों भाइयों में युद्ध हुआ था और ईश्वर सिंह ही जयपुर के राजा बने थे। मराठों ने ईश्वर सिंह पर फिर दबाब डाला और वो अकेला पड़ गया था। मराठे, राठौड़ और सिसोदिया सारे माधोसिंह के पक्ष में हो गए थे माधोसिंह को कुछ छोटे राज्य भी दे दिए।

ईश्वर सिंह के साथ सिर्फ सूरजमल ही थे। इसके बाद मराठों की दुश्मनी महाराजा सूरजमल के साथ हो गई थी। मराठाओं ने भरतपुर के कुम्हेर किले को घेर लिया था, लेकिन किले पर कब्ज़ा नहीं कर पाए।

इस युद्ध मल्हार राव का बेटा मारा गया। इसके बाद मराठों ने सूरजमल को मारने की योजना बनाई। फिर मराठा,राजपूत और मुगलों की शक्ति मिलकर सूरजमल पर आक्रमण करने की सोची, लेकिन यह समल्लित शक्ति सूरजमल के कुम्हेर जिले को भी नहीं जीत पाई।

महाराजा सूरजमल की उदारता Generosity of Maharaja Surajmal

जब पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठो और अहमद शाह अब्दाली के बीच में हुई थी, तब उस युद्ध मे मराठो के एक लाख सेनिको में से आधे से ज्यादा सैनिक मारे गए थे और न तो मराठो के पास खाने-पीने का सामान था और न ही उनके पास कोई हथियार बचे थे।

मराठो के भूखे प्यासे सैनिक वापस लौट पड़े, वो भरतपुर क्षेत्र से ही वापस गए थे। न तो उनके पास सर्दी में पहनने को कपड़े थे, न ही राशन और घायल सैनिकों के लिए कोई दवा दारू।

महाराजा सूरजमल ने अपनी उदारता दिखाते हुए उन सभी सैनिकों को 10 दिन तक खान-पान दिया और घायल सैनिकों का उपचार करवाया।

जाते हुए सैनिकों को कपड़े, रुपए और राशन भी दिया था। मराठों के पतन हो जाने के बाद हरियाणा प्रदेश के विभिन्न भाग जैसे झज्जर, रोहतक और गाजियाबाद राज्य भी जीत लिए थे।

महाराजा सूरजमल का बलिदान Sacrifice of Maharaja Surajmal

महाराजा सूरजमल से शासक नजीबुद्दौला ने संधि करने किस सोची, क्योंकि दिल्ली के आस-पास सब क्षेत्रों पर सूरजमल ने कब्जा कर लिया था।

लेकिन नजीबुद्दौला ने संधि नहीं होने पर लड़ाई छेड़ दी, उस समय महाराजा सूरजमल के पास 30 ही घुड़सवार थे। हिंडन नदी के किनारे दानों सेनाओं ने आमने-सामने डेरे लगा दिए। पहले दिन की लड़ाई में जाट ही विजयी रहे। जब कि घमासान युद्ध मच रहा था,

महाराज सूरजमल केवल 30 घुड़सवारों के साथ मुगल और बिलोचियों की सेना में पिल पड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। 25 दिसम्बर 1763 को महाराजा सूरजमल का बलिदान दिवस मनाया जाता हैं।

दोस्तों यहाँ पर आपने महाराजा सूरजमल बलिदान दिवस (Maharaja Surajmal Sacrifice Day) के साथ अन्य कई तथ्यों के बारे में पड़ा। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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