नौ देवी की कथा / नौ देवी के मन्त्र Story of Nau Devi

नौ देवी की कथा Story of Nau Devi

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है आज के हमारे इस लेख नौ देवी की कथा (Story of Nau Devi) में। दोस्तों इस लेख के

माध्यम से आप नौ देवियों के नौ रूपों के बारे में जानेंगे। तो आइए दोस्तों बढ़ते हैं और पढ़ते हैं यह कथा नौ देवी की कथा और उनके मंत्र:-

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नौ देवी की कथा

नौ देवी की कथा और नाम Nau devi ki Katha or Name 

यहाँ पर नवरात्रि की नौ देवियों की कथा और उनके नाम बताए गए हैं:-

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नौ देवी की कथा

माँ शैलपुत्री Maa Shailputri 

माता शैलपुत्री नौ देवियों में प्रथम रूप होता है, जब राजा दक्ष ने यज्ञ किया तो उन्होंने भगवान शिव को यज्ञ में नहीं बुलाया जिससे क्रोधित होकर माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंची

किंतु महाराज दक्ष ने वहाँ पर भगवान शिव का अपमान किया भगवान शिव का अपमान किए जाने पर माता सती ने यज्ञ की ज्वाला में अपने आप का आत्मदाह कर लिया। इसके बहुत समय के बाद माता

सती ने हिमाचल राज के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया हिमाचल के राजा होने के कारण उनकी पुत्री का नाम शैलपुत्री रखा गया। माँ शैलपुत्री नंदी की सवारी करती हैं, माता शैलपुत्री के दाएँ, हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित होते हैं।

माता ब्रह्मचारिणी Maa Bramhacharini 

माता ब्रह्मचारिणी नवदुर्गा का दूसरा रूप होती है, इस रूप में उन्हें एक हाथ में जप माला तथा दूसरे हाथ में कमंडल लिये हुए दर्शाया गया है।

माता शैलपुत्री भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी इसलिए उन्होंने नारद मुनि के आदेश के अनुसार कठिन तपस्या प्रारंभ कर दी।

उन्होंने सैकड़ों वर्षो तक भगवान शिव की कठिन तपस्या की। उन्होंने सफेद साड़ी पहनकर धरती पर बिछौना बिछाकर लेटना शुरू किया और जंगलों में भगवान श्री राम की कठोर तपस्या करती रही।

लाखों हजारों वर्षों तक तपस्या करने के बाद उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हो गए, तथा उनके इस तपस्वी रूप को माता ब्रह्मचारी के नाम से जाना जाता है।

माता चंद्रघंटा Maa Chandrghanta 

माता ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए नारद मुनि के आदेश अनुसार कठिन तपस्या की जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने माता ब्रह्मचारी को वरदान दिया और पति के रूप में स्वयं

उनके साथ विवाह किया। इसके पश्चात माता ब्रह्मचारिणी और भगवान शिव एक साथ रहने लगे जिसके कारण भगवान शिव के साथ रहने के फलस्वरूप माता ब्रह्मचारी के सिर पर

आधा चंद्र प्रतीत होने लगा और माता का नाम चंद्रघंटा हो गया। माता चंद्रघंटा की सवारी बाघ है। माता चंद्रघंटा बाघ पर सवार होते हुए 10 हाथ वाली स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं। उनके सभी

हाथों में युद्ध के लिए सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र साथ ही एक हाथ में जप माला कमंडल और कमल पुष्प सुशोभित हो रहे हैं।

माता कुष्मांडा Maa Kushmanda 

पौराणिक धर्म ग्रंथों के आधार पर बताया जाता है, कि माता ने अपनी मुस्कान की एक छोटी सी ऊर्जा के द्वारा ब्रह्मांड की रचना एक छोटे से अंडे के रूप में की थी इसलिए माता का नाम कूष्मांडा हो गया।

माता कुष्मांडा अष्ट भुजाधारी हैं, माता कुष्मांडा के चार भुजाओं में राक्षसों तथा अन्यायी पापियों के लिए अस्त्र-शस्त्र सुशोभित होते हैं।

वहीं माता के भक्तों के लिए चार हाथों में जप माला, कमंडल, कमलपुष्प के साथ ही एक हाथ में कमंडल में अमृत सुशोभित होता है। 

माँ स्कंदमाता Maa Skandmata 

स्कंदमाता नव दुर्गा का पांचवा रूप है। कुमार कार्तिकेय को भी स्कंद भगवान के नाम से जाना जाता है और कुमार कार्तिकेय की माता मां पार्वती हैं,

इसलिए माता पार्वती को स्कंदमाता के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता शेर की सवारी करती हैं, जो चार भुजाधारी हैं, इनकी गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान रहते हैं।

माता कात्यायनी Maa Katyayani 

माता कात्यायनी माँ दुर्गा का छठवाँ रूप मानी जाती हैं, महर्षि कात्यायन ने माता भवानी को अपनी पुत्री प्राप्त करने के लिए उनकी कठोर तपस्या की।

महर्षि कात्यायन की तपस्या से माँ प्रसन्न हो गई और उन्होंने महर्षि कात्यायन के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण माँ को कात्यायनी कहा जाता है। 

माँ कालरात्रि Maa Kaalratri 

माँ कालरात्रि माता दुर्गा का सातवाँ रूप है, माता दुर्गा ने रक्तबीज नामक असुर का संहार करने के लिए अपने मनोहारी सुंदर स्वरूप परिवर्तित करके

काली रात्रि के समान रूप को बना लिया माँ कालरात्रि ने रक्तबीज का संहार किया और उसके संपूर्ण रक्त को पी लिया माँ कालरात्रि का वाहन गधा है।

माँ महागौरी Maa Mahagouri 

महागौरी माँ का आठवाँ रूप माना जाता है. जब मां कालरात्रि ने रक्तबीज का संहार किया और सारा रक्त पी लिया उनका सारा रक्त पीने के पश्चात माँ कालरात्रि ने एक सुंदर सरोवर में स्नान किया

और अपना फिर से गौर सुंदर श्याम शरीर प्राप्त कर लिया तथा महागौरा के नाम से जाने जाने लगी। माता महागौरी नंदी की सवारी करती हैं, इनके हाथ में त्रिशूल और डमरू सुशोभित होते हैं।

सिद्धिदात्री माता Maa Sidhdhidatri 

माता का नवमाँ रूप सिद्धिदात्री माता के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह माता अष्टसिद्धि की स्वामी है। माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। कहा जाता है, कि भगवान शिव शंकर ने भी माता सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या की थी,

ताकि उन्हें सिद्धियाँ प्राप्त हो सके, माता सिद्धिदात्री चार भुजाधारी हैं, उनके हाथों में कमल, चक्र, शंख, गदा के साथ कमल सुशोभित होते हैं तथा यह कमल पर ही बिराजती हैं। 

नौ देवी के मन्त्र Nau Devi Ke Mantra 

नवरात्री में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। अगर माँ दुर्गा के नौ रूपों के बीजमन्त्र का जाप करने और प्रत्येक दिन उनकी

पूरे श्रृद्धा से पूजा करने और कन्याभोज कराने से भक्तों के विगड़े काम बनते है, कष्ट, दुख दूर होते है मन प्रसन्न घर में सुख सम्पति और शांति आती है।

नौ देवी के मन्त्र Nau Devi ke Mantra 

  1. माँ शैलपुत्री का मन्त्र :- ह्रीं शिवायै नम:।
  2. माँ ब्रह्मचारिणी का मन्त्र :- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
  3. माँ चन्द्रघण्टा का मन्त्र :- ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
  4. माँ कूष्मांडा का मन्त्र :- ऐं ह्री देव्यै नम:।
  5. माँ स्कंदमाता का मन्त्र :- ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
  6. माँ कात्यायनी का मन्त्र :- क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
  7. माँ कालरात्रि का मन्त्र :- क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
  8. माँ महागौरी का मन्त्र :- श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
  9. माँ सिद्धिदात्री का मन्त्र :-  ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

दोस्तों आपने इस लेख में नौ देवी की कथा (Story of Nau Devi) और मन्त्र पढ़े। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।  

FAQs for Nou Devi





Q.1. नवरात्रि के 9 देवी कौन हैं?





Ans. माता शैलपुत्री, फिर ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नवरात्री की 9 देवी है।









Q.2. नौ देवियों में सबसे बड़ी देवी कौन सी है?





Ans. नौ देवियों में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति आदिशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है।









Q.3. दुर्गा मां किसकी बेटी थी?





Ans. मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है, कि माँ दुर्गा प्रजापति दक्ष की पुत्री थी उस समय उनका नाम माता सती था।







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